
हलो दोस्तों SENIOR COACHING CENTRE मेंआप सब का स्वागत करत हैं। आज मैं आपलोगों के लिए वर्ग दशम् का जीव विज्ञान(Biology) का पाठ -1 जैव प्रक्रम लेकर आया हूँ। जिसके अंतर्गत इस पोस्ट में हमलोग जानेंगे जीवों में पोषक (Nutrition) के बारे में।
★ जैव प्रक्रम (Life Processes) :-वे सारी क्रियाएँ जिनके द्वारा जीवों का अनुुरक्षण होता है, जैव प्रक्रम कहलाती हैं।
● सभी सजीवों में जैव प्रक्रम की प्रक्रिया होती है।जिससे उनमें पोषण, श्वसन,परिवहन, उत्सर्जन आदि क्रियाऐं होती हैं।
● सभी सजीवों में उपापचयी क्रियाओं के सफल संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति पोषण के द्वारा होता हैं।
★ पोषण (Nutrition) :- वह विधि जिससे जीव पोषक तत्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते है, पोषण कहलाता है।
● जीवों मेें मुुख्यतः दो विधियोंं द्वारा होता है-
1. स्वपोषण (Autotrophic nutrition) :-ऐसे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्ववयं बनाते है, स्वपोषी कहलाते हैं। जैसे- हरे पेड़-पौधे ।
2.परपोषण (Heterotopic nutrition) :- ऐसे जीव जो अपना भोजन स्वयं न बनाकर किसी न किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते है, परपोषण कहलााते हैं। जैसे - मानव, जानवर, किट-पतंग आदि।
● परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं -
(¡). मृतजीवी पोषण (Saprophytic nutrition) :- वैसा पोषण जिसमें जीव अपना भोजन मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से घुलित कार्बनिक पदार्थो के रूप में अपने शरीर की सतह से अवशोषित करते है, उसे मृतजीवी पोषण कहते हैं। जैसे - कवक,बैैक्टीरिया,प्रोटोजोआ आदि।
(¡¡). परजीवी पोषण (Parasitic nutrition) :- वैसा पोषण जिसमें जीव अपना भोजन दूसरे प्राणी के संपर्क में, स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर प्राप्त करता है, उसे परजीीवीपोषण कहलाते हैं। जैसे - कवक,जीवाणु, अमरबेल, गोलकृमि,मलेरिया परजीवी आदि।
(¡¡¡). प्राणिसम पोषण (Holozoic nutrition) :- वैसा पोषण जिसमें प्रणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंंतुऔं केे भोजन ग्रहण करनेे की विधि द्वारा ग्ररहण करते है, प्रााणिसम पोषण कहलाता हैं।जैैसे - मनुष्य, जंतुओं, अमीबा, मेेेढ़क आदि।
■ पौधों में पोषण ■
★ प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) :- हरे पौधे क्लोरोफिल की उपस्थिति एवं सूर्य के प्रकाश मेें जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके कार्बोहाइड्रेट(Carbohydrate) का निर्मण करते हैं. यह प्रक्रिया प्रकाश संंश्लेषण कहलाती हैं।
★ प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक सामग्रीयाँ :-
(i) जल :- जल पौधे जड़ों द्वारा मिट्टी से ग्रहण करतेे है।जिससे प्राप्त हाइड्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड से मिलकर कार्बोहाइड्रेट ब बनाता है जिसमें जल का 1.1% उपयोग करते हैं।
(ii) कार्बन डाइऑक्साइड :- पौधे इसे वायुुमंडल से प्राप्त कर कार्बोहाइड्रेटट बनाते हैं।
(iii) सूर्य का प्रकाश (Sunlight) :- प्रकाश संंश्लेषण मेें 1-2% तक प्रकाश का उपयोग होता है. जो सूर्य से प्राप्त करते हैं।
(iv) पर्णहरित(Chlorophyll) :- यह हरे रंग का वर्णक होता है, जो कि मुख्यतः पतियों में पाया जाता है.इसलिये पतियों को प्रकाश संश्लेषी अंग और क्लोरोफिल को प्रकाश संश्लेषी अंगक कहते हैं।
● प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन मुक्त होता है जो वायु को शुद्ध रखता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के बीच संतुलन बनाए रखता हैं।
■■■ जंतुओं में पोषण ■■■
● जंतु भोजन के लिए पूर्ण रूप से अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं अर्थात जंतु परपोषी होते है जो मृतजीवी, परजीवी या प्राणिसमपोषी हो सकते हैं।
● अमीबा तथा पैरामीशियम प्रणिसमपोषी जंतु हैं।
★अमीबा में पोषण अंतग्रहण,पाचन तथा बहिष्करण प्रक्रियाओं द्वारा पूर्ण होता है।
● अमीबा अपने कूटपादों की मदद से भोजन ग्रहण करता है।
★★★ मनुष्य का पाचनतंत्र ★★★★
★ पाचन तंत्र (Digestive System) :- मनुष्य में अंगों के वैसे समूह, जो भोजन के पाचन में सहायक होते हैं, पाचन तंत्र कहलाते हैं।
● पाचन तंत्र दो भगों में बाँटा जाता है :-
1. आहार नाल (Alimentary Canal) :- मनुष्य तथा उच्च श्रेणी के जंतुओं में भोजन के पाचन केे लिए विशेेष अंग होते हैं .जो आहार नाल कहलाते हैं।
●मनुष्य में आहार नाल की लम्बाई लगभग 8-10 मीटर या 32-36 फीट तक होती है।
● आहार नाल के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं।
(i) मुखगुहा (Buccalcavity) :- यह आहार नाल का पहल भाग है।इसमें जीभ ,दाँत एवं लार ग्रंथियों पायी जाती हैं।
★ जीभ :- जीभ मुखगुहा के फर्श पर स्थित एक मांसल रचना है।
● जीभ के उपरी सतह पर छोटे-छोटे अंकुर होते हैं जिन्हें स्वाद कलियाँ कहते हैं।
● स्वाद कलियों के द्वारा भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे मीठा, खट्टा, खारा, तीता आदि का ज्ञान होता है।
★ दाँत (Teeth) :-दाँँत का निर्माण कैल्शियम फाँँस्फेट,कैल्शियम कार्बोनेट तथा कैल्शियम फ्लोराइड एवं अन्य लवण से होता है।
●मनुष्य का दाँत मसूढ़े में धंसा हुआ होता है।
●दाँत का ऊपरी भाग चमकीला होता है, जिसे ईनामेल(Enamel) कहते हैं।जो शरीर का सबसे कड़ी हड्डी हैं।
●एक व्यस्क मनुष्य में 32 दाँत होते हैं, जो चार प्रकार के है।
(a) कृंतक(Incisor) :-भोजन को काटनेवाला
(b) रदनक(Canine ) :- भोजन को चीरने या फाड़नेवाला
(c) अग्रचर्वणक (Premolar) :- चबानेवाला
(d)चर्वणक(Molar ) :- चबानेवाला
●मनुष्य का दाँत दो बार जन्म लेता हैं, इसलिए इसे Diphyodont कहते हैं।
★ लारग्रंथि (Salivary Gland) :- मुखगुहा मेेंं तीन जोड़ी लार ग्रंथि पायी जाती हैंं।
ii) ग्रासनली (Oesophagus) :- यह भोजन को मुखगुहा से आमाशय तक पहुुँचाता है।
(iii)आमाशय(Stomach) :-यह एक थैली जैसी रचना है, इसकी दीवार में अनेक ग्रंथियाँ पायी जाती है,जठर-ग्रंथियाँ कहते हैं।
● जठर ग्रंथियों (gastric glands)द्वारा जठर रस (gastric jusce) स्रावित होता है, जिसका PH मान 2.2 होता हैं।
● जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl),पेप्सिन ,रेनिन ,म्यूसीन आदि पदार्थ पायी जाती हैं।
● आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय माध्यम प्रदान करना , जीवाणुओं को नष्ट करना, एवं प्रोपेप्सीन (Propepsin)को Pepsin में बदलना आदि कार्य करता है।
(iv) छोटी आँत(Small Intestine) :- यह आहार नाल का सबसे लंबा भाग है।जो बेलनाकार रचना होता हैं।
● छोटी आँत में ही भोजन पाचन की क्रिया पूर्ण होती हैं।
●मनुष्य में इसकी लम्बाई 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है ।विभिन्न जंतुओं में इसकी लम्बाई भिन्न-भिन्न होती हैं।
●छोटी आँत तीन भागों ग्रहणी,जेजुनम तथा इलियम में बँटा होताहैं
★ग्रहणी (Duodenum) :-यह छोटी आँत का पहला भाग है।
★जेजुनम(Jejunum) :- यह छोटी आँत का मध्य भाग है।
★इलियम (ileum) :- यह एक कुंडलित लम्बी नली के आकर की रचना है।जिससे आंत्रीय रस स्रावित होता हैं।
●आंत्रीय रस में.इरेप्सिन,माल्टोज, सुक्रोज, लैक्टोज तथा लाइपेज नामक एंजाइम पाये जाते हैं।
(v) बड़ी आँत (Large Intstine) :- यह एक मोटी नली के समान रचना है, इसमें भोजन का पाचन नहीं होता है, किन्तु जल का अवशोषण एवं अपच भोजन का शरीर से निष्कासित होता हैं।
2.पाचन ग्रंथियाँ (Digestive glands) :- पाचन ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं।
(i) लार ग्रंथि (Salivary gland):- इसके द्वाारा लार स्रावित होता है,जो हल्का अम्लीय होता हैं ,जिसका PH मान 6.8 होता हैं।
●लार में टायलिन नामक एंजाइम होता है, जो भोजन में उपस्थित स्टार्च को माल्टोज में परिवर्तित करता हैंं।
● लार भोजन को लसलसा ,मुलायम, एवं चिकना बनाता है। तथा स्वाद को भी बढ़ाता है।
(ii) यकृत (Liver ) :- यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, इसका वजन लगभाग 1.5kg होता हैं।
● यकृत कोशिकाओं से पित्त रस का स्राव होता है, जिसका संचय पित्ताशय में होता हैं।
● पित्त रस (Bile juice) पीले हरे रंग का क्षारीय द्रव है इसका PH मान 7.7 होता हैं।
●पित्त भोजन को क्षारीय माध्यम प्रदान करता है, हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है, और वसा का पायसीकरण करता है
(iii) अग्न्याशय (Pancreas) :- यह गुलाबी रंग की ग्रंथि है, जिससे अग्न्याशयिक नामक पाचक रस स्रावित होता हैं।
● अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juice) हल्का क्षारीय होता है इसका PH मान 7.7 होता हैं।
● यह रस कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा तीनों का पाचन करता है।
इस प्रकार हम सब जाने जैव प्रक्रम में पोषण के बारे में एवं पौधों और जंतुओं में पोषण से संबंधित विभिन्न क्रियाओं के बारे में।मैं आशा करत हूँ कि आपको पसंद आया होगा।clik to downlod pdf
●●●●●● धन्यवाद ●●●●●●
★ जैव प्रक्रम (Life Processes) :-वे सारी क्रियाएँ जिनके द्वारा जीवों का अनुुरक्षण होता है, जैव प्रक्रम कहलाती हैं।
● सभी सजीवों में जैव प्रक्रम की प्रक्रिया होती है।जिससे उनमें पोषण, श्वसन,परिवहन, उत्सर्जन आदि क्रियाऐं होती हैं।
● सभी सजीवों में उपापचयी क्रियाओं के सफल संचालन के लिए आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति पोषण के द्वारा होता हैं।
★ पोषण (Nutrition) :- वह विधि जिससे जीव पोषक तत्वों को ग्रहण कर उनका उपयोग करते है, पोषण कहलाता है।
● जीवों मेें मुुख्यतः दो विधियोंं द्वारा होता है-
1. स्वपोषण (Autotrophic nutrition) :-ऐसे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर न रहकर अपना भोजन स्ववयं बनाते है, स्वपोषी कहलाते हैं। जैसे- हरे पेड़-पौधे ।
2.परपोषण (Heterotopic nutrition) :- ऐसे जीव जो अपना भोजन स्वयं न बनाकर किसी न किसी रूप में अन्य स्रोतों से प्राप्त करते है, परपोषण कहलााते हैं। जैसे - मानव, जानवर, किट-पतंग आदि।
● परपोषण मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं -
(¡). मृतजीवी पोषण (Saprophytic nutrition) :- वैसा पोषण जिसमें जीव अपना भोजन मृत जंतुओं और पौधों के शरीर से घुलित कार्बनिक पदार्थो के रूप में अपने शरीर की सतह से अवशोषित करते है, उसे मृतजीवी पोषण कहते हैं। जैसे - कवक,बैैक्टीरिया,प्रोटोजोआ आदि।
(¡¡). परजीवी पोषण (Parasitic nutrition) :- वैसा पोषण जिसमें जीव अपना भोजन दूसरे प्राणी के संपर्क में, स्थायी या अस्थायी रूप से रहकर प्राप्त करता है, उसे परजीीवीपोषण कहलाते हैं। जैसे - कवक,जीवाणु, अमरबेल, गोलकृमि,मलेरिया परजीवी आदि।
(¡¡¡). प्राणिसम पोषण (Holozoic nutrition) :- वैसा पोषण जिसमें प्रणी अपना भोजन ठोस या तरल के रूप में जंंतुऔं केे भोजन ग्रहण करनेे की विधि द्वारा ग्ररहण करते है, प्रााणिसम पोषण कहलाता हैं।जैैसे - मनुष्य, जंतुओं, अमीबा, मेेेढ़क आदि।
■ पौधों में पोषण ■
★ प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) :- हरे पौधे क्लोरोफिल की उपस्थिति एवं सूर्य के प्रकाश मेें जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करके कार्बोहाइड्रेट(Carbohydrate) का निर्मण करते हैं. यह प्रक्रिया प्रकाश संंश्लेषण कहलाती हैं।

(i) जल :- जल पौधे जड़ों द्वारा मिट्टी से ग्रहण करतेे है।जिससे प्राप्त हाइड्रोजन कार्बन डाइऑक्साइड से मिलकर कार्बोहाइड्रेट ब बनाता है जिसमें जल का 1.1% उपयोग करते हैं।
(ii) कार्बन डाइऑक्साइड :- पौधे इसे वायुुमंडल से प्राप्त कर कार्बोहाइड्रेटट बनाते हैं।
(iii) सूर्य का प्रकाश (Sunlight) :- प्रकाश संंश्लेषण मेें 1-2% तक प्रकाश का उपयोग होता है. जो सूर्य से प्राप्त करते हैं।
(iv) पर्णहरित(Chlorophyll) :- यह हरे रंग का वर्णक होता है, जो कि मुख्यतः पतियों में पाया जाता है.इसलिये पतियों को प्रकाश संश्लेषी अंग और क्लोरोफिल को प्रकाश संश्लेषी अंगक कहते हैं।
● प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में ऑक्सीजन मुक्त होता है जो वायु को शुद्ध रखता है एवं कार्बन डाइऑक्साइड तथा जल के बीच संतुलन बनाए रखता हैं।
■■■ जंतुओं में पोषण ■■■
● जंतु भोजन के लिए पूर्ण रूप से अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं अर्थात जंतु परपोषी होते है जो मृतजीवी, परजीवी या प्राणिसमपोषी हो सकते हैं।
● अमीबा तथा पैरामीशियम प्रणिसमपोषी जंतु हैं।
★अमीबा में पोषण अंतग्रहण,पाचन तथा बहिष्करण प्रक्रियाओं द्वारा पूर्ण होता है।
● अमीबा अपने कूटपादों की मदद से भोजन ग्रहण करता है।
★★★ मनुष्य का पाचनतंत्र ★★★★
★ पाचन तंत्र (Digestive System) :- मनुष्य में अंगों के वैसे समूह, जो भोजन के पाचन में सहायक होते हैं, पाचन तंत्र कहलाते हैं।
● पाचन तंत्र दो भगों में बाँटा जाता है :-
1. आहार नाल (Alimentary Canal) :- मनुष्य तथा उच्च श्रेणी के जंतुओं में भोजन के पाचन केे लिए विशेेष अंग होते हैं .जो आहार नाल कहलाते हैं।
●मनुष्य में आहार नाल की लम्बाई लगभग 8-10 मीटर या 32-36 फीट तक होती है।
● आहार नाल के मुख्य भाग निम्नलिखित हैं।
(i) मुखगुहा (Buccalcavity) :- यह आहार नाल का पहल भाग है।इसमें जीभ ,दाँत एवं लार ग्रंथियों पायी जाती हैं।
★ जीभ :- जीभ मुखगुहा के फर्श पर स्थित एक मांसल रचना है।
● जीभ के उपरी सतह पर छोटे-छोटे अंकुर होते हैं जिन्हें स्वाद कलियाँ कहते हैं।
● स्वाद कलियों के द्वारा भोजन के विभिन्न स्वादों जैसे मीठा, खट्टा, खारा, तीता आदि का ज्ञान होता है।
★ दाँत (Teeth) :-दाँँत का निर्माण कैल्शियम फाँँस्फेट,कैल्शियम कार्बोनेट तथा कैल्शियम फ्लोराइड एवं अन्य लवण से होता है।
●मनुष्य का दाँत मसूढ़े में धंसा हुआ होता है।
●दाँत का ऊपरी भाग चमकीला होता है, जिसे ईनामेल(Enamel) कहते हैं।जो शरीर का सबसे कड़ी हड्डी हैं।
●एक व्यस्क मनुष्य में 32 दाँत होते हैं, जो चार प्रकार के है।
(a) कृंतक(Incisor) :-भोजन को काटनेवाला
(b) रदनक(Canine ) :- भोजन को चीरने या फाड़नेवाला
(c) अग्रचर्वणक (Premolar) :- चबानेवाला
(d)चर्वणक(Molar ) :- चबानेवाला
●मनुष्य का दाँत दो बार जन्म लेता हैं, इसलिए इसे Diphyodont कहते हैं।
★ लारग्रंथि (Salivary Gland) :- मुखगुहा मेेंं तीन जोड़ी लार ग्रंथि पायी जाती हैंं।
ii) ग्रासनली (Oesophagus) :- यह भोजन को मुखगुहा से आमाशय तक पहुुँचाता है।
(iii)आमाशय(Stomach) :-यह एक थैली जैसी रचना है, इसकी दीवार में अनेक ग्रंथियाँ पायी जाती है,जठर-ग्रंथियाँ कहते हैं।
● जठर ग्रंथियों (gastric glands)द्वारा जठर रस (gastric jusce) स्रावित होता है, जिसका PH मान 2.2 होता हैं।
● जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl),पेप्सिन ,रेनिन ,म्यूसीन आदि पदार्थ पायी जाती हैं।
● आमाशय में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भोजन को अम्लीय माध्यम प्रदान करना , जीवाणुओं को नष्ट करना, एवं प्रोपेप्सीन (Propepsin)को Pepsin में बदलना आदि कार्य करता है।
(iv) छोटी आँत(Small Intestine) :- यह आहार नाल का सबसे लंबा भाग है।जो बेलनाकार रचना होता हैं।
● छोटी आँत में ही भोजन पाचन की क्रिया पूर्ण होती हैं।
●मनुष्य में इसकी लम्बाई 6 मीटर तथा चौड़ाई 2.5 सेंटीमीटर होती है ।विभिन्न जंतुओं में इसकी लम्बाई भिन्न-भिन्न होती हैं।
●छोटी आँत तीन भागों ग्रहणी,जेजुनम तथा इलियम में बँटा होताहैं
★ग्रहणी (Duodenum) :-यह छोटी आँत का पहला भाग है।
★जेजुनम(Jejunum) :- यह छोटी आँत का मध्य भाग है।
★इलियम (ileum) :- यह एक कुंडलित लम्बी नली के आकर की रचना है।जिससे आंत्रीय रस स्रावित होता हैं।
●आंत्रीय रस में.इरेप्सिन,माल्टोज, सुक्रोज, लैक्टोज तथा लाइपेज नामक एंजाइम पाये जाते हैं।
(v) बड़ी आँत (Large Intstine) :- यह एक मोटी नली के समान रचना है, इसमें भोजन का पाचन नहीं होता है, किन्तु जल का अवशोषण एवं अपच भोजन का शरीर से निष्कासित होता हैं।
2.पाचन ग्रंथियाँ (Digestive glands) :- पाचन ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं।
(i) लार ग्रंथि (Salivary gland):- इसके द्वाारा लार स्रावित होता है,जो हल्का अम्लीय होता हैं ,जिसका PH मान 6.8 होता हैं।
●लार में टायलिन नामक एंजाइम होता है, जो भोजन में उपस्थित स्टार्च को माल्टोज में परिवर्तित करता हैंं।
● लार भोजन को लसलसा ,मुलायम, एवं चिकना बनाता है। तथा स्वाद को भी बढ़ाता है।
(ii) यकृत (Liver ) :- यह शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है, इसका वजन लगभाग 1.5kg होता हैं।
● यकृत कोशिकाओं से पित्त रस का स्राव होता है, जिसका संचय पित्ताशय में होता हैं।
● पित्त रस (Bile juice) पीले हरे रंग का क्षारीय द्रव है इसका PH मान 7.7 होता हैं।
●पित्त भोजन को क्षारीय माध्यम प्रदान करता है, हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देता है, और वसा का पायसीकरण करता है
(iii) अग्न्याशय (Pancreas) :- यह गुलाबी रंग की ग्रंथि है, जिससे अग्न्याशयिक नामक पाचक रस स्रावित होता हैं।
● अग्न्याशयिक रस (Pancreatic juice) हल्का क्षारीय होता है इसका PH मान 7.7 होता हैं।
● यह रस कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वसा तीनों का पाचन करता है।
इस प्रकार हम सब जाने जैव प्रक्रम में पोषण के बारे में एवं पौधों और जंतुओं में पोषण से संबंधित विभिन्न क्रियाओं के बारे में।मैं आशा करत हूँ कि आपको पसंद आया होगा।clik to downlod pdf
●●●●●● धन्यवाद ●●●●●●
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