हलो दोस्तों मैं Class 10th के भौतिकी के एक और नये पाठ के साथ उपस्थित हूँ। आज के इस पोस्ट में हम मानव नेत्र से संबंधित जानकारी प्राप्त करेंगे। तो चलिए जानते है कि मानव नेत्र क्या है। एवं वायुमंडलीय अपवर्तन तथा प्रकाश का वर्ण - विक्षेपण से संबंधित घटनाओं के बारे में।जो परीक्षा केे दृष्टिकोण से अतिआवश्यक हैं।
★ मानव नेत्र या आँख (Human eye):- यह एक प्रकृति प्रदत प्रकाशीय यंंत्र हैं।
★बनावट:- मानव नेेत्रया आँख लगभग गोलीय होता है, जिसे नेेत्रगोलक (Eyeball) कहते हैं। जिसका व्यास 2.3cm है।
●इसके बाहरी परत सफेद मोटे अपारदर्शी चमड़े की होती है ,जिसे श्वेत पटल और उभरा हुआ पारदर्शी भाग को कॉर्निया कहते हैं।
●श्वेत पटल के नीचे गहरे भूरे रंग की परत होती है, जिसे कॉरॉयड कहते हैं।जो आगे आकर दो परतों में विभक्त हो जाती हैं।
● जिसे परितारिका या आइरिस तथा पक्ष्माभी या सिलियरी पेशियाँ कहते हैं।
● नेत्र लेंस जिलेटिन जैसे पारदर्शक तथा मुलायम पदार्थ से बने एक उतल लेंस होता हैं।
● नेत्र लेंस जिलेटिन जैसे पारदर्शक तथा मुलायम पदार्थ से बने एक उतल लेंस होता हैं।
●नेत्रगोलक की सबसे भीतरी सूक्ष्मग्राही परत को दृष्टिपटल या रेटिना कहते हैं।जिसपर वस्तु का प्रतिबिंब उलटा और छोटा बनता है।लेकिन मस्तिष्क में सीधा और बड़ा देखने की संवेदना होती हैं।
● कॉर्निया और नेत्र लेंस के बीच का भाग जलीय द्रव या नेत्रोद से भरा होता है।इसके करण ही आंसू निकलती है ,जो नमकीन होता हैं।
●नेत्र लेंस और रेटिना के बीच का भाग काचाभ द्रव से भरा होता है।
●आँख का रंग आइरिस के रंग पर निर्भर करता है।
●आइरिस में एक छिद्र होता है, जिसे पुतली कहते हैं।पुतली प्रकाश में स्वतः छोटी एवं अंधकार में बड़ी हो जाती हैं।
●आँख निकटस्थ बिन्दु जहाँ पर स्थित किसी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर बने आँख का निकट बिन्दु कहा जाता है।एक स्वस्थ आँख के लिए निकट-बिन्दु 25cm होती हैं।
★समंजन-क्षमता (Power of accommodation) :- आँख द्वारा अपने सिलियरी पेशियों केे तनाव को घटा- बढ़ा कर अपने लेंस की फोकस-दूर को बदलकर दूर या निकट की वस्तु को साफ-साफ देखने की क्षमता को समंंजन-क्षमता कहते हैं।
★दृष्टि दोष तथा उनके सुधार :-
★दृष्टि दोष तथा उनके सुधार :-
★ दृष्टि दोष (Defects of vision) :- जब किसी कारणों से नेेत्र निकट स्थित या बहुत दूर स्थित वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिंंब रेटिना पर बनानेेकी क्षमता खो देेता है, तो उसे दृष्टि दोष कहते हैं।
★यह दोष मुख्यत निम्नलिखित प्रकार के होते है।:-
1.निकट दृष्टि दोष (Myopia):- इस दोष से पीड़ित आँख दूर स्थित वस्तुओं को स्पष्ट नहीं देख पाता है।
★करण:-
●नेत्र गोलक का लम्बा हो जाना अर्थात नेत्र लेंस और रेटिना के बीच दूरी का बढ़ जाना।
●नेत्र लेंस का आवश्यकता से अधिक मोटा हो जान,जिसके चलते उसकी फोकस दूरी कम हो जाती हैं।
★ उपचार:- इस दोष को अवतल लेंस द्वारा दूर किया जाता हैं।
2.दूर दृष्टि दोष (Hypermetropia):- इस दोष से पीड़ित आँख निकट स्थित वस्तुओं क़ स्पष्ट नहीं देख पाता है।
★कारण:-
●नेत्र गोलक का छोटा हो जाना अर्थात नेत्र लेंस और रेटिना के बीच की दूरी का घट जाना।
●नेत्र लेंस का आवश्यकता से अधिक पतला हो जाना जिसके चलते उसकी फोकस दूरी बढ़ जाता है।
★ उपचार:- इस दोष को उतल लेंस द्वारा दूर किया जा सकता है।
3.जरा दृष्टि दोष (Presbyopia) :- इस दोष से पीड़ित आँख की मांसपेशियों में तेजी से सिकुड़ने की क्षमता नहीं रह जाती है जिसके चलते समंजन क्षमता घट जाती है।इससें निकट-बिन्दु के साथ-साथ दूर-बिन्दु भी प्रभावित होता हैं।
★कारण:- आँख की समंजन क्षमता घट जाना
★उपचार:- बाइफोकल लेंस युक्त चश्में के उपयोग से इस दोष को दूर किया जा सकता हैं।
4.मोतियाबिंद ():- इस दोष से पीड़ित आँख का नेत्र लेंस पारदर्शक न रहकर ,दुधिया रंग पा पारभासक हो जाता है इससे आँख की रेटिना पर किसी वस्तु का तीव्र और स्पष्ट प्रतिबिंब नहीं बन पाता हैं।
★कारण:- नेत्र लेंस का दुधिया होना
★उपचार:- इसे दूर करने के लिए लेंस हटाकर नया कृत्रिम लेंस लगा दिया जाता हैं।
5.वर्णधता (Colour blindness) :- इस दोष पीड़ित आँख प्राथमिक वर्णों का पहचान नहीं कर पाता हैं।
★कारण:- रेटिना के कोशिकाओं को शंक्वाकार हो जाना ।
★ उपचार :- यह वंशानुगत होता है, जो लाइलाज बीमारी है।
6.अबिन्दुकता (Astigmatism) :- इस दोष से पीड़ित आँख क्षैतिज एवं उधर्वाधर रेखाओं का पहचान नहीं कर पाता हैं।
■ नोट :- किसी वस्तु का प्रतिबिंब रेटिना पर 1/10 सेकण्ड तक रहता हैं।, इसके करण ही उल्काएँ आकाश में लम्बी रेखा जैसी मालूम पड़ते हैं।तेजी से घूमते हुए बिजली के पंखे का अस्पष्ट दिखाई देना।चलचित्र भी इसी सिद्धांत पर बनाए जाते है।चलचित्र में प्रति सेकण्ड 24चित्र दिखाये जाते हैं।
★ वायुमंडलीय अपवर्तन:- जब पृृथ्वी के वायुमंडल द्वारा प्रकाश का अपवर्तन होता है तो उसे वायुमंडलीय अपवर्तन कहते हैं।
●वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते है।
●वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के बीच का समय लगभग 4 मिनट बढ़ जाता है।
★श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण होता है।
★प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion):- श्वेत प्रकाश का अवयवी रंगों में टूटना वर्ण - विक्षेेपण कहलाता है।
★काँच का प्रिज्म वर्ण-विक्षेपण करता है।
★ वर्णपट(स्पेक्ट्रम) (Spectrum):- श्वेत प्रकाश से प्राप्त रंगीन प्रकाश की पट्टी को वर्णपट कहते हैं।
★ स्पेक्ट्रम के वर्ण क्रमशः बैगनी(violet) ,जामुनी (indigo),नीला (blue),हरा(green) ,पीला(yellow) ,नारंगी(orange) ,और लाल (red ) । हिंदी में इसे बैजानीहपीनाला तथा अँग्रेजी में VIBGYOR कहते हैं।
★बैंगनी रंग के प्रकाश का तरंगदैर्घ्य सबसे कम और लाल का सबसे अधिक होता हैं।
★वर्ण-विक्षेपण में बैंगनी रंग का विचलन सबसे अधिक और लाल का सबसे कम होता हैं।
★जलकणों से किया गया वर्ण विक्षेपण इन्द्रधनुष बनाता है।
★किसी कण पर पड़कर प्रकाश के एक अंश को विभिन्न दिशाओं में छितराना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है।
★ प्रकीर्णन के कारण आसमान का रंग नीला दिखता है।सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग तथा उसके इर्द-गिर्द लाल दिखाई पड़ता हैं।
★किसी कोलॉइडी विलयन में निलम्बित कणों से प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडन प्रभाव कहते हैं।
★ सूक्ष्म कण अधिक तरंगदैर्घ्य के प्रकाश की अपेक्षा कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक अच्छी तरह करते हैं।
★कणों के आकार के बढ़ने के साथ-साथ अधिक तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक होने लगता हैं।काफी बडे़ कण सभी रंग के प्रकाश का लगभग समान रूप से प्रकीर्णन करते हैं।
आज के इस पोस्ट में हमनें जाना मानव नेत्र ,वायुमंडलीय अपवर्तन ,प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण के बारे में । मैं आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा।तो कोमेंट बोक्स में अवश्य लिखे।
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●वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते है।
●वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के बीच का समय लगभग 4 मिनट बढ़ जाता है।
★श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण होता है।
★प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण (Dispersion):- श्वेत प्रकाश का अवयवी रंगों में टूटना वर्ण - विक्षेेपण कहलाता है।
★काँच का प्रिज्म वर्ण-विक्षेपण करता है।
★ वर्णपट(स्पेक्ट्रम) (Spectrum):- श्वेत प्रकाश से प्राप्त रंगीन प्रकाश की पट्टी को वर्णपट कहते हैं।
★ स्पेक्ट्रम के वर्ण क्रमशः बैगनी(violet) ,जामुनी (indigo),नीला (blue),हरा(green) ,पीला(yellow) ,नारंगी(orange) ,और लाल (red ) । हिंदी में इसे बैजानीहपीनाला तथा अँग्रेजी में VIBGYOR कहते हैं।
★बैंगनी रंग के प्रकाश का तरंगदैर्घ्य सबसे कम और लाल का सबसे अधिक होता हैं।
★वर्ण-विक्षेपण में बैंगनी रंग का विचलन सबसे अधिक और लाल का सबसे कम होता हैं।
★जलकणों से किया गया वर्ण विक्षेपण इन्द्रधनुष बनाता है।
★किसी कण पर पड़कर प्रकाश के एक अंश को विभिन्न दिशाओं में छितराना प्रकाश का प्रकीर्णन कहलाता है।
★ प्रकीर्णन के कारण आसमान का रंग नीला दिखता है।सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य का रंग तथा उसके इर्द-गिर्द लाल दिखाई पड़ता हैं।
★किसी कोलॉइडी विलयन में निलम्बित कणों से प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडन प्रभाव कहते हैं।
★ सूक्ष्म कण अधिक तरंगदैर्घ्य के प्रकाश की अपेक्षा कम तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक अच्छी तरह करते हैं।
★कणों के आकार के बढ़ने के साथ-साथ अधिक तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन अधिक होने लगता हैं।काफी बडे़ कण सभी रंग के प्रकाश का लगभग समान रूप से प्रकीर्णन करते हैं।
आज के इस पोस्ट में हमनें जाना मानव नेत्र ,वायुमंडलीय अपवर्तन ,प्रकाश का वर्ण-विक्षेपण के बारे में । मैं आशा करता हूँ कि आपको यह पोस्ट अच्छा लगा होगा।तो कोमेंट बोक्स में अवश्य लिखे।
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