हलो दोस्तों नमस्कार, जय भीम । में एक बार फिर से आपको स्वागत करते है। अपना वेबसाइट www.seniorcoachingcentre.com में ।आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे विद्युत-धारा का चुंबकीय प्रभाव बारे में।
★चुंबक(magnet):- सामान्यतः लौह वस्तुओं को आकर्षित करने का गुण चुम्बकत्व कहलाता है।तथा जिस वस्तु में यह गुण पाया जाता है उसे चुंबक कहते हैं।
● आकर के आधार पर चुंबक के प्रकार:-छड़ चुंबक, नाल चुंबक, वलय चुंबक ।
★ ध्रुव (Pole):- किसी चुंबक के सिरे के निकट का वह बिन्दु जहाँ चुंबक का आकर्षक बल अधिकतम होता है, ध्रुव कहलाता हैं।
●स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर चुंबक का जो ध्रुव उत्तर दिशा की ओर हो जाता है वह उत्तर ध्रुव तथा जो ध्रुव दक्षिण दिशा की ओर हो जाता है वह दक्षिण ध्रुव कहलाता है।
● चुंबक के सजातीय ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित और विजातीय ध्रुव आकर्षित करते हैं।
● चुंबक के सजातीय ध्रुव एक-दूसरे को प्रतिकर्षित और विजातीय ध्रुव आकर्षित करते हैं।
★ चुम्बकीय अक्ष (Magnetic axis) :- चुम्बक के उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव को मिलनेवाली रेखा को चुम्बकीय अक्ष कहते है।
★ चुम्बकीय लम्बाई (Magnetic lenght) :- किसी छड़ चुम्बक के दोनों ध्रुवों के बीच की न्यूनतम दूरी को चुम्बक की चुम्बकीय लम्बाई कहा जाता हैं।यह चुम्बक के ज्यामितीय लम्बाई का करीब 84% होता है।
●चुम्बकीय ध्रुव की प्रबलता की इकाई एम्पीयर मीटर होती हैं।
★ चुम्बकीय आघूर्ण :- किसी चुम्बक के एक ध्रुव की प्रबलता और चुम्बकीय लम्बाई के गुणनफल को चुम्बकीय आघूर्ण कहा जाता है।
★ चुम्बकीय पदार्थ (Magnetic Substances):- वैसा पदार्थ जो चुम्बक से आकर्षित हो चुम्बकीय पदार्थ कहलाते है जैसा-लोहा, निकेल, कोबाल्ट।
★अचुम्बकीय पदार्थ (Nonmagnetic Substance):- वैसे पदार्थ जो चुम्बक से आकर्षित नहीं होते हैं अचुम्बकीय पदार्थ कहलाता है। जैसे- लकडी, रबर,प्लास्टिक, कोयला आदि।
★ दिक्सूचक :- दिशा पता लगाने वाले यंत्र को दिक्सूचक कहा जाता है।
●चुम्बक या धारावाही चालक अपने चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
●चुम्बकीय क्षेत्र को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है।
● चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण निम्नलिखित है।
1.चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँँ एक संतत बंद वक्र हैं।
2.ध्रुवों के समीप क्षेत्र-रेखाएँँ घनी होती है।ध्रुवों से दूरी बढ़ाने के साथ उनका घनत्व घटता जाता है।
3. क्षेत्र- रेखाओं की निकटता चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता का द्योतक है।
4. चुंबकीय क्षेत्र-रेखाएँँ एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।
★ चुम्बकीय लम्बाई (Magnetic lenght) :- किसी छड़ चुम्बक के दोनों ध्रुवों के बीच की न्यूनतम दूरी को चुम्बक की चुम्बकीय लम्बाई कहा जाता हैं।यह चुम्बक के ज्यामितीय लम्बाई का करीब 84% होता है।
●चुम्बकीय ध्रुव की प्रबलता की इकाई एम्पीयर मीटर होती हैं।
★ चुम्बकीय आघूर्ण :- किसी चुम्बक के एक ध्रुव की प्रबलता और चुम्बकीय लम्बाई के गुणनफल को चुम्बकीय आघूर्ण कहा जाता है।
★ चुम्बकीय पदार्थ (Magnetic Substances):- वैसा पदार्थ जो चुम्बक से आकर्षित हो चुम्बकीय पदार्थ कहलाते है जैसा-लोहा, निकेल, कोबाल्ट।
★अचुम्बकीय पदार्थ (Nonmagnetic Substance):- वैसे पदार्थ जो चुम्बक से आकर्षित नहीं होते हैं अचुम्बकीय पदार्थ कहलाता है। जैसे- लकडी, रबर,प्लास्टिक, कोयला आदि।
★ दिक्सूचक :- दिशा पता लगाने वाले यंत्र को दिक्सूचक कहा जाता है।
●चुम्बक या धारावाही चालक अपने चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
●चुम्बकीय क्षेत्र को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है।
● चुम्बकीय क्षेत्र रेखाओं के गुण निम्नलिखित है।
1.चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँँ एक संतत बंद वक्र हैं।
2.ध्रुवों के समीप क्षेत्र-रेखाएँँ घनी होती है।ध्रुवों से दूरी बढ़ाने के साथ उनका घनत्व घटता जाता है।
3. क्षेत्र- रेखाओं की निकटता चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता का द्योतक है।
4. चुंबकीय क्षेत्र-रेखाएँँ एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।
● चुंबकीय क्षेत्र के मापन का इकाई न्यूटन/एम्पियर मीटर है, जिसे टेसला भी कहते हैं।
★ मैक्सवेल का दक्षिण-हस्त नियम (Maxwell's right-hand rule):- यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए की अँगुठा धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो , तो अन्य अँगुलियों का मुडा़व चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करेंगी।
● सीधी धारा के कारण चुम्बकीय बल -रेखाएँँ वृताकार होती हैं।
★ परिनालिका (Solenoid):- वीद्युतरोधी चालक तार की बेलनाकार अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।
★ विद्युत-चुंबक (Electromagnet):- वैसा चुंबक जिसमें चुंबकत्व उतने ही समय तक विद्यमान रहता है जितने समय तक परिनालिका में वीद्युत-धारा प्रवाहित होती रहती है।
●परिनालिका के क्रोड नरम लोहे का बनाया जाता हैं।
● विद्युत-चुंबक के चुंबकत्व की तीव्रता निम्न बातों पर निर्भर करता है।
* परिनालिका में फेरों की संख्या पर ।
* विद्युत-धारा का परिमाण पर ।
* क्रोड के पदार्थ की प्रकृति पर।
★ फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम (Fleming's left-hand rule) :- यदि बाएँ हाथ का अंगूठा ,तर्जनी और मध्यमा को परस्पर लम्बवत रखा जाए तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करे और अंगूठा गति की दिशा में हो तो मध्यमा धारा की दिशा का संकेत करता है।
★ विद्युत मोटर (Electric Motor) :- वैसा यंत्र जो विद्युत-उर्जा को यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित करता है, उसे विद्युत मोटर कहते है।
●उपयोग-पंखा, लेथ मशीन, टेपरिकॉर्डर आदि में ।
★विद्युत-चुंबकीय प्रेरणा (Electromagnetic induction) :- जब कभी कुंडली. और किसी चुंबक के बीच आपेक्षिक गति होती है तब कुंडली में विद्युत-धारा प्रेरित होती है । इस प्रभाव को विद्युत-चुम्बकीय प्रेरणा कहते हैं।
★फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम (Fleming's right-hand rule) :- यदि दाहिने हाथ के अंगूठा ,तर्जनी और मध्यमा परस्पर लम्बवत हो तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को संकेत करती हो और गति की दिशा में हो ,तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा का संकेत करेगी ।
★ विद्युत जनित्र या डायनेमो (Generators or dynamo) :- वैसा यंत्र जो यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है, उसे विद्युत जनित्र कहते हैं।
★ दिष्टधारा(DC) :- वैसा धारा जो परिपथ में हमेशा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है, दिष्टधारा कहलाती है।
★ प्रत्यावर्ती धारा(AC) :- वैसी धारा जो विद्युत परिपथ में खास समय तक एक दिशा में और उतने ही समय तक विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है, प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
● हमारे घरों में विद्युत आपूर्ति 220V होती है,जिसकी आवृति 50हर्ट्ज(Hz)होती है।अर्थात इसकी ध्रुवता प्रति सेकंड में 100 बार परिवर्तित होती है।
● घरेलू परिपथ में उपकरण विद्युन्मय तार और उदासीन तार के बीच समांतरक्रम में जोड़ा जाता है।
★ अतिभारण(overloading):- विद्युत परिपथ में लगे उपकरण की कुल शक्ति जब स्वीकृत सीमा से बढ़ जाती है तो उपकरण आवश्यकता से अधिक धारा खींचने लगता है, तो उसे अतिभारण कहते हैं।
★ लघुपथन(Short circuit) :- जब किसी कारण से गर्मतार एवं उदासीन तार आपस में सम्पर्क में आ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में परिपथ का प्रतिरोध बहुत ही कम हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप अत्यधिक धारा प्रवाहित होने लगती है।यह घटना लघुपथन कहलाती है।
● विद्युत-परिपथों की अतिभारण तथा लघुपथन से बचावके लिए सबसे आवश्यक सुरक्षा युक्ति फ्यूज है।
● स्विच तथा फ्यूज हमेशा विद्युन्मय तार में लगाए जाते हैं।
आज के इस पोस्ट में बस इतना ही ,यह पाठ एक ही भाग में समाप्त होता है। मुझे आशा है की आप सब को अच्छा लग होगा।तो कोमेंट बोक्स में अवश्य लिखे।
- : धन्यवाद : -
★ मैक्सवेल का दक्षिण-हस्त नियम (Maxwell's right-hand rule):- यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए की अँगुठा धारा की दिशा की ओर संकेत करता हो , तो अन्य अँगुलियों का मुडा़व चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करेंगी।
● सीधी धारा के कारण चुम्बकीय बल -रेखाएँँ वृताकार होती हैं।
★ परिनालिका (Solenoid):- वीद्युतरोधी चालक तार की बेलनाकार अनेक फेरों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।
★ विद्युत-चुंबक (Electromagnet):- वैसा चुंबक जिसमें चुंबकत्व उतने ही समय तक विद्यमान रहता है जितने समय तक परिनालिका में वीद्युत-धारा प्रवाहित होती रहती है।
●परिनालिका के क्रोड नरम लोहे का बनाया जाता हैं।
● विद्युत-चुंबक के चुंबकत्व की तीव्रता निम्न बातों पर निर्भर करता है।
* परिनालिका में फेरों की संख्या पर ।
* विद्युत-धारा का परिमाण पर ।
* क्रोड के पदार्थ की प्रकृति पर।
★ फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम (Fleming's left-hand rule) :- यदि बाएँ हाथ का अंगूठा ,तर्जनी और मध्यमा को परस्पर लम्बवत रखा जाए तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करे और अंगूठा गति की दिशा में हो तो मध्यमा धारा की दिशा का संकेत करता है।
★ विद्युत मोटर (Electric Motor) :- वैसा यंत्र जो विद्युत-उर्जा को यांत्रिक उर्जा में परिवर्तित करता है, उसे विद्युत मोटर कहते है।
●उपयोग-पंखा, लेथ मशीन, टेपरिकॉर्डर आदि में ।
★विद्युत-चुंबकीय प्रेरणा (Electromagnetic induction) :- जब कभी कुंडली. और किसी चुंबक के बीच आपेक्षिक गति होती है तब कुंडली में विद्युत-धारा प्रेरित होती है । इस प्रभाव को विद्युत-चुम्बकीय प्रेरणा कहते हैं।
★फ्लेमिंग का दक्षिण-हस्त नियम (Fleming's right-hand rule) :- यदि दाहिने हाथ के अंगूठा ,तर्जनी और मध्यमा परस्पर लम्बवत हो तो तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को संकेत करती हो और गति की दिशा में हो ,तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा का संकेत करेगी ।
★ विद्युत जनित्र या डायनेमो (Generators or dynamo) :- वैसा यंत्र जो यांत्रिक उर्जा को विद्युत उर्जा में परिवर्तित करता है, उसे विद्युत जनित्र कहते हैं।
★ दिष्टधारा(DC) :- वैसा धारा जो परिपथ में हमेशा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है, दिष्टधारा कहलाती है।
★ प्रत्यावर्ती धारा(AC) :- वैसी धारा जो विद्युत परिपथ में खास समय तक एक दिशा में और उतने ही समय तक विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है, प्रत्यावर्ती धारा कहलाती है।
● हमारे घरों में विद्युत आपूर्ति 220V होती है,जिसकी आवृति 50हर्ट्ज(Hz)होती है।अर्थात इसकी ध्रुवता प्रति सेकंड में 100 बार परिवर्तित होती है।
● घरेलू परिपथ में उपकरण विद्युन्मय तार और उदासीन तार के बीच समांतरक्रम में जोड़ा जाता है।
★ अतिभारण(overloading):- विद्युत परिपथ में लगे उपकरण की कुल शक्ति जब स्वीकृत सीमा से बढ़ जाती है तो उपकरण आवश्यकता से अधिक धारा खींचने लगता है, तो उसे अतिभारण कहते हैं।
★ लघुपथन(Short circuit) :- जब किसी कारण से गर्मतार एवं उदासीन तार आपस में सम्पर्क में आ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में परिपथ का प्रतिरोध बहुत ही कम हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप अत्यधिक धारा प्रवाहित होने लगती है।यह घटना लघुपथन कहलाती है।
● विद्युत-परिपथों की अतिभारण तथा लघुपथन से बचावके लिए सबसे आवश्यक सुरक्षा युक्ति फ्यूज है।
● स्विच तथा फ्यूज हमेशा विद्युन्मय तार में लगाए जाते हैं।
आज के इस पोस्ट में बस इतना ही ,यह पाठ एक ही भाग में समाप्त होता है। मुझे आशा है की आप सब को अच्छा लग होगा।तो कोमेंट बोक्स में अवश्य लिखे।
- : धन्यवाद : -

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