हलो दोस्तों जैसा की आप सब जानते है कि मैं आप लोगों के लिए भौतिकी का नोट्स उपलब्ध करा रहा हूँ।जो वर्ग दशम् के लिए अति आवश्यक है।आज के इस पोस्ट में हम सब जानेगें विद्युत-धारा एवं उसके प्रभाव के बारे में।
 ★विद्युत परिपथ (Electric circuit) :- किसी विद्युत धारा के सतत बंद पथ को   विद्युत परिपथ कहते है।
★विद्युत-धारा (Electric current) :-       विद्युुत आवेश के     प्रवाह की दर को   विद्युत धारा कहते है।इसे I द्वारा सूूूचि किया जाता हैं।यह   अदिश राशि है।
●विद्युत धारा मपने वाले यंत्र को अमीटर कहते हैं, इसे परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है।
●यदि किसी परिपथ में t  समय में q  आवेश प्रवाहित हो तो विद्युत धारा I=q/t=n×e/t जहाँ  n=1,2,3...  इलेक्ट्रॉन की संख्या ।
●एक कुलॉम आवेश की रचना करने वाले इलेक्ट्रॉनइलेक्ट्रॉनों की संख्या e= 6.25×10 के पावर 18 होता है।
●विद्युत धारा का मत्रक कूलंब/सेकंड या एम्पीयर(A) होता हैं।
विद्युत विभव (Electric potential) :- एकांंक   धनावेश को अनंत से विद्युत  क्षेत्र में किसी एक बिंंदु तक लाने  मेें किए गए र्काय को उस बिंदु पर विभव कहते है।इसके मात्रक वोल्ट(V)  होता है।पृृथ्वी का विभव शूून्य माना गया है । अर्थात v=w/q
★विभवांतर (Potential difference) : - विभवों के अंतर को  विभवांतर कहते है।इसका माात्रक भी वोल्ट ही होता है। इसे वोल्टमीटर से  मापा जाता है।
● सेल के द्वारा चालक के सिरो पर विभवांतर बनाए रखा जाता है।
★चालक  (Conductor) :- जिस पदार्थ से धारा प्रवाहित हो सके चालक कहलाता है।जैसे-सोना, चाँदी, ताँबा, लोहा, इत्यादि।
★ अचालक या कुचालक ( Insulator)- जिस पदार्थ से धारा प्रवाहित न हो सके अचालक या कुचालक कहलाता है।जैसे-काँच, प्लास्टिक, रबड़ इत्यादि।
★अर्द्धचालक (Semi conductor) :- जिस पदार्थ का विशिष्ट चालकता, चालक तथा अचालक के बीच हो उसे अर्द्धचालक कहते है। जैसे-जरमेनियम (Ge),सिलिकॉन (Si)
★ आमीटर (Ammeter):- जिस यंत्र के द्वारा विद्युत परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा को मापा जाता है, आमीटर कहलाता है।इसे विद्युत परिपथ में श्रेणीक्रम में  जोड़ा जाता है। इस यंत्र का प्रतिरोध  बहुत कम होता है।
★ वोल्टमीट (Voltmeter):- जिस यंत्र के  द्वारा विद्युत परिपथ में दो बिंदुओं के बीच विभवांतर मापा जाता है.वोल्टमीट कहलाता है। इसे विद्युत परिपथ में समांतर क्रम में जोड़ा जाता है।इस यंत्र का प्रतिरोध उच्च होता है।
★ओम का नियम (Ohm's Law):-  नियत ताप पर किसी चालक के सिरों के बीच का विभवांतर (V) उससे प्रवाहित धारा  (I) के समानुपाती होती है। अर्थात I समानुपाती V या I=V/R  जहाँ R एक नियतांक है।
 ★प्रतिरोध (Resistance):- किसी पदार्थ का वह गुण जो चालक से होकर विद्युत धारा के प्रवाह में रूकावट डालता है, प्रतिरोध कहलाता है।
●यदि किसी चालक का प्रतिरोध  R उसके सिरों के बीच विभवांतर V और उसमें प्रवाहित धारा I का अनुपात है। अर्थात R=V/I
●प्रतिरोध का मात्रक वोल्ट/ऐम्पियर या ओम होता है।
● किसी चालक का प्रतिरोध निम्न बातों पर निर्भर करता है।
(1)  चालक की प्राकृति पर,
(2) चालक के ताप पर - ताप बढ़ने से चालक का प्रतिरोध बढ़ता है।लेकिन अर्द्धचालक में घटता है।
(3)  चालक की लंबाई पर - चालक की लंबाई बढ़ने पर प्रतिरोध भी बढ़ता है।
(4) चालक के अनुप्रस्थकाट के क्षेत्रफल पर - चालक के अनुप्रस्थकाट का क्षेत्रफल बढ़ने पर यानी मोटाई बढ़ने पर प्रतिरोध घटता है।
★प्रतिरोधकता (Resistivity):- चालक पदार्थ के इकाई अनुप्रस्थ परिच्छेद वाले इकाई लम्बाई के छड़ का प्रतिरोध उसका प्रतिरोधकता या विशिष्ट प्रतिरोध कहलाता है।इसे p  से सूचित किया जाता है। इसे सूत्र  p = RA/L से व्यक्त किया जाता है।इसका मात्रक ओममीटर होता है।
     ★ प्रतिरोधों का समूहन :- जब दो या दो से अधिक प्रतिरोधों को एक - दूसरे से कई विधियों द्वारा जोड़ा जाता है ,तो उसे प्रतिरोधों का समूहन कहते हैं।
●प्रतिरोधों का समूहन के दो  विधियॉ मूख्य हैं।
1. श्रेणीक्रम समूहन (Series Grouping) :-इसमें संयोजित बहुत से प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध उनके व्यक्तिगत प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है।
●यदि किसी परिपथ का प्रतिरोध क्रमशः R1,R2,R3,हो तो समतुल्य प्रतिरोध  Rs= R1+R2+R3 होता हैं।
2.समांतरक्रम या पार्श्वक्रम संयोजन (Parallel Grouping):- इसमें जुड़े प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम उन सभी प्रतिरोधकों के अलग-अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता हैं।
●यदि किसी परिपथ का प्रतिरोध क्रमशः R1,R2,R3  हो तो समतुल्य प्रतिरोध 1/Rp= 1/R1+1/R2+1/R3 होता है।
●घरेलू परिपथ में प्रतिरोधों को समांतर क्रम में जोड़ा जाता हैं।
 ★ विद्युत-धारा का ऊष्मीय प्रभाव (Heating effect of electric current):- जब किसी चालक से विद्युत-धारा प्रवाहित की जाती है तब वह चालक गर्म हो जाता है, अर्थात विद्युत उर्जा का ऊष्मा में रूपांतरण होता है। इसे ही विद्युत-धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहाजाता है।
● किसी चालक में t  समय में उसके प्रतिरोध R को पार करने में विद्युत-धारा  I द्वारा किया गया कार्य उसमें आंतरिक उर्जा के रूप में संचित. हो जाता है।  ● संचित आंतरिक उर्जा या किया गया कार्य   U=W=I2Rt  होता है।
●किसी चालक में प्रवाहित विद्युत - धारा द्वारा उत्पन्न ऊष्मा का परिमाण उसके द्वारा चालक के प्रतिरोध के विरुद्ध किया गए कुल कार्य के बराबर होता है।
● कार्य ,आंतरिक ऊर्जा या ऊष्मा का मात्रक जूल (J) है।ऊष्मा का cgl  मात्रक कैलोरी (cal) है।जहाँ  1cal= 4.186J  या  4.2J लगभग होता है।
★ विद्युत-शक्ति (Electric Power):- किसी विद्युत-परिपथ में विद्युत ऊर्जा के व्यय की दर को उस परिपथ की विद्युत-शक्ति कहते हैं।
● यदि किसी विद्युत-परिपथ मे समय t में व्यय ऊर्जा w हो ,तो विद्युत -शक्ति     P=W/t   होता है।
●विद्युत -शक्ति का मात्रक वाट (w) एवं बड़ा मात्रक  किलोवाट (Kwh) होता है। जहाँ 1Kwh=1000w
● विद्युत ऊर्जा का व्यावसायिक मात्रक किलोवाट घंटा (Kwh) होता है।  एक किलोवाट घंटा को एक यूनिट (B.O.T.) कहाजाता है। जहाँ 1B.O.T. =3.6×10  के पावर 6जूल होता है।
●वीद्युत-धारा के ऊष्मीय प्रभाव का हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है।जैसे- हिटर, आयरन, रूम हिटर, टोस्टर इत्यादि।
●विद्युत ताप युक्तियों के तापन अवयव के प्रतिरोधकता बहुत अधिक  एवं गलनांक अत्यधिक उच्च होता है।
● विद्युत ताप युक्तियों तथा उपस्करों में नाइक्रोम के तार की कुंडली का व्यवहार किया जाता है, क्योंकि नाइक्रोम की प्रतिरोधकता और गलनांक दोनों ही उच्च होते हैं।
●नाइक्रोम एक निकेल (60%)  क्रोमियम (12%)  मैंगनीज (2%)  तथा लोहा  (26%) के मिश्रधातु हैं।
●विद्युत बल्ब में टंगस्टन धातु के तंतु या फिलामेंट का व्यवहार किया जाता है ।क्योंकि इसका प्रतिरोधकता कम और गलनांक अत्यधिक उच्च होता है।
● विद्युत बल्ब के अंदर निष्क्रिय गैस भर दिया जाता है ताकि टंगस्टन का वाष्पण न हो सके।
● बिजली के उपकरणों की सुरक्षा के लिए फ्यूज का उपयोग किया जाता है।फ्यूज के तार ऐसे पदार्थ से बने होते हैं जिनकी प्रतिरोधकता अधिक और गलनांक कम होती है।
●विद्युत फ्यूज सुरक्षा की एक युक्ति है। इसे ताँबा तथा टिन के मिश्रधातु से बनाया जाता है।
     आज के इस पोस्ट में जाने विद्युत -धारा एवं उससे संबंधित प्रभाव के बारे में। अतः मैं आशा करता हूँ कि आपको बहुत कुछ जानकारी प्राप्त हुआ होगा।                       - :   धन्यवाद : -