Hii  आज मैं लेकर आया हूँ  वर्ग दशम् का जीव विज्ञान के पाठ जैव प्रक्रम के अंतर्गत परिवहन का नोट्स ,जो बहुत ही सरल   भाषा में तैयार किया गया है। इस में हम बताएंगे कि परिवहन क्या है, पौधोंं एवं जंतुओं में परिवहन कैस  होता है तथा कौन - कौन से अंंग भाग लेेते हैं।यह नोट्स सभी परीक्षाओं केेे दृष्टिकोण से बहुत ही उपयोगी सावित होगा ।
    ★ पदार्थों का परिवहन (Transport of materials) :- समस्त जीवों  मेंं उपयोगी पदर्थोंं का उनके मूल स्रोतों से शरीर की प्रत्येक कोशिका तक  पहचाने तथा अनुपयोगी और हानिकारक पदार्थोंं  को कोशिकाओं से निकलकर गंतव्य स्थान तक पहुंचने की क्रिया को पदार्थों का परिवहन कहते हैं।
  ★ परिवहन तंत्र (Transport System) :- सभी जीवों शरीर में पदार्थों के परिवहन या स्थानांतरण के लिए विकसित तंंत्र होता है, उसेे परिवहन तंत्र कहते हैं।
            ■■■ पौधों में पदार्थों का परिवहन ■■■
 ●  एककोशिकीय पौधों जैसे क्लेमाइडोमोनास,यूग्लीना एवं सरल बहुकोशिकीय शैवालों में पदार्थों का परिवहन विसरण द्वारा होता हैं
●जटिल   बहुकोशिकीय पौधों में जल एवं खाद्य-पदार्थों के परिवहन हेतु विशिष्ट ऊतक पाए जाते हैं, जिन्हें संवहन ऊतक कहा जाता है।
◆  संवहन ऊतक दो प्रकार के होते हैं :-
(i) जाइलम  :- यह जल-संवहन ऊतक भी कहलाता है।इसकी कोशिकाएँ मृत होती हैं ।
● यह जल एवं घुलित खनिज का स्थानांतरण करता है।
● इसमें जल एवं घुलित खनिज लवणों का बहाव ऊपर की ओर होता है।
(ii) फ्लोएम :-  यह संवहन ऊतक का दूसरा भाग हैं, इसकी कोशिका  जीवित  होती हैं।
● यह खाद्य पदार्थों का स्थानांतरण करता है।
●  इसमें खाद्य पदार्थों का ऊपर एवं नीचे दोनों तरफ परिवहन होता है।
   ◆  पौधों में पदार्थों के परिवहन में वाष्पोत्सर्जन तथा मूलदाब मुख्य भूमिका निभाते हैं।
★ वाष्पोत्सर्जन(Transpiration):- पौधों के   वायवीय भागों से जल का रंध्रों द्वारा वाष्प  केरूप में निष्क्कासन  की क्रिया वाष्पोत्सर्जन      कहलाती है।
● वाष्पोत्सर्जन पौधों के लिए महत्वपूर्ण  होता है।क्योंकि इसके द्वारा ही पौधों में लगातार जल की प्राप्ती होती है,तथा तापक्रम-संतुलन बनाए रखने में सहायक होता हैं।
★ स्थानांतरण (Translocation) :- पौधे के एक भाग से दूसरे भाग में खाद्य पदार्थों के जलीय घोल के आनेे- जानेे     को खाद्य पदार्थों का   स्थानांतरण कहते हैं।
● पौधों में खाद्य पदार्थों का स्थानांतरण सदा अधिक सांद्रतावाले भागों की ओर होता है।
            ■■■■■■  जंतुओं में परिवहन ■■■■■■
●उच्च श्रेणी के जंतुओं में एक विशेष प्रकार का परिवहन तंत्र होता है जो ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्वों, हॉर्मोन, उत्सर्जि पदार्थों को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में ले जाता है।
 ◆  अगों के वैसा समुह, जो रक्त परिसंचरण में सहायक होता हैं, उसे रक्त परिसंचरण तंत्र कहते हैं।इसका खोज  सन् 1628ई०   में विलियम हार्वे ने की थी।
★ रक्त परिसंचरण के प्रमुख अवयव निम्नलिखित हैं :- 
 1. रुधिर या रक्त (Blood) :- यह लाल रंग  का एक गाढ़ा क्षारीय तरल पदार्थ है जो ह्रदय तथाारक्त वाहिनियों मेें प्रवाहित होता है।
● रक्त का   PH  मान  7.4  होता हैं।
● रक्त को तरल संयोजी ऊतक भी कहा जाता हैं।
 ◆ रक्त के दो  प्रमुख घटक हैं।पहला भाग तरल होता है, जो प्लाविका या  प्लाज्मा कहलाता है। दूसरा ठोस भाग जिसमें लाल रक्त कोशिकाएँ,श्ववेत  रक्त कोशिकाएँ तथा रक्त पट्टिकाणु होते हैं।
★ प्लाज्मा (Plasma ) :- यह   हलके पीले रंग का चिपचिपा द्रव हैै,जो पूूरे रक्त का करिब 55% होता हैं।
●प्लाज्मा में उपस्थित प्रोटीन प्लाज्मा कहलाते है, जिनमें प्रमुख हैं-फाइब्रिनोजिन,प्रोथ्रोंंबिन तथा हिपैरिन हैं।
■ रक्त कोशिकाएँ (Blood Cells)  :- यह पूरे रक्त का लगभग 45% होता है, जिसमें निम्न घटक होते हैं।
★  लाल रक्त कोशिका (RBC) :-  इसमें  एक विषेेश  प्रकार का     प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन (Haemoglobin)  पाया जाता है, जिसके कारण ही रक्त का रंग लाल होता हैं।
● RBC का निर्माण अस्थिमज्जा में होता हैं, जिसका जीवन काल  120 दिनों का होता हैं। तथा व्यास  7.2 माइक्रो होता हैं।
●  RBC के  द्वारा ही ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन होता हैं।
● हीमोग्लोबिन को ऑक्सीजन का वाहक कहा जाता है ,क्योंकि इसके एक अणु की क्षमता ऑक्सीजन के चार अणुओं के संयोजन के बराबर होता हैं।
● रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा कम होने पर रक्क्षीणता रोग हो जाता है।
★ श्वेत रक्त कोशिका (WBC) :- ये    अनियमित आकर की केन्द्र युक्त कोशिकाएँ हैं।
● इसमें हीमोग्लोबिन पाया जाता हैं,जिसके कारण रंगहीन होती हैं।
● WBC की संख्या RBC अपेक्षा अत्यंत कम होती हैं।
● WBC  हमारे शरीर के रोग निरोधक क्षमता को बढाता हैं।तथा     इसका जीवन काल 1-4 दिन तक होता हैं।
★रक्त पट्टिकाणु (Blood Platlets) या बिम्बाणु (Thrombocytes):-   यह मनुष्य याा अन्य स्तनधारियों के रक्त में पाया जाता है,इसमें केन्द्रक नहीं होता है ।
● इसका निर्माण अस्थिमज्जा में होता है,इसका जीवन काल    दिन होता है।और रक्त का थक्का जमाने में सहायक होता हैं।
★ रक्त के कार्य :- 
◆ ऑक्सीजन एवं कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन करता है।
◆ टूटी-फूट  कोशिकाओं को भक्षण करता है एवं रक्त को स्वच्छ रखता हैं।
◆ बैक्टीरिया एवं रोगाणुओं को नष्ट करता है।
◆ ऊतक द्रव्य में लवण, जल,अम्ल तथा विभिन्न तत्वों का संतुलन बनाए रखता।है।
◆ ताप का नियंत्रण एवं हार्मोन के परिवहन में सहायक होता है।
2ह्रदय (Heart ) :- मानव  का ह्रदय गुलाबी रंग का शंक्वाकार खोखला तथा अत्यंत कोमल और मांंसल रचना है, जो वक्ष गुहा में दोनों फेफड़ों के बीच    स्थित होता है।
● यह ह्रद्-पेशियों का बना होता हैं,जिसका वजन  300  ग्राम होता हैं।
● ह्रदय एक केंद्रीय पंप अंग है जो रक्त पर दबाव बनाकर उसका परिसंचरण पूरे शरीर में करता है।
●ह्रदय पेरिटोनियम की एक दोहरी झिल्ली के अंदर बंद होता है, जिसे ह्रदयावरण (Pericardium) कहते है, इसमें पेरिकार्डियल द्रव होता है, जो ह्रदय को बाहरी आघातों से रक्षा करता है।
● मनुष्य  के ह्रदय में चार कोष्ठ या वेश्म  (Chambers) होते हैं जो दाँया और बायाँ अलिंद(Auricle) तथा दाँया और बायाँ निलय (Ventricle)  कहलाते हैं।
● दोनों अलिंद एवं निलय एक-दूसरे से क्रमशः अंतराअलिंद एवं अंतरानिलय भित्ति के द्वारा अलग होते हैं।
● दायाँ निलय बायाँ निलय से छोटा होता है।
● दायाँ अलंद एवं निलय के बीच कपाट (Valve)पाया जाता है, जिसे त्रिदल कपाट (Tricuspid valve) कहलाता है जो रक्त को दायाँ अलिंद से निलय में जाने देता हैं।
● बायाँ अलिंद एवं निलय के बीच के कपाट को द्विदली कपाट कहते है जो रक्त को बायाँ अलिंद से निलय में जाने देता हैं।
● दाएँ निलय से एक बड़ी फुफ्फुस चाप निकलती है जो आगे दाई और बाई फुफ्फुस धमनियों में बँट जाती है।ये दोनों धमनियाँँ रक्त को फेफड़े में ले जाती हैं।
● बाएँ निलय से एक महाधमनी निकलती है ।जससे फेफड़े को छोड़कर शरीर के सभी भागों में जाने वाली धमनियाँँ निकलती हैं ।
● दाएँ अलिंद में दो अग्र महाशिराएँ तथा एक पश्च महाशिरा खुलती हैं जो शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त को दाएँ अलिंद में ले जाती हैं।
●बाएँ अलिंद में फुफ्फुस शिराएँ खुलती हैं जो फेफडों से शुद्ध रक्त बाएँ अलिंद में लाती हैं।
● ह्रदय के वेश्मों का संकुचन सिस्टोल तथा शिथिलन डायस्टोल कहलाता है।
● ह्रदय के सिस्टोल और डायस्टोल मिलकर ह्रदय की एक धड़कन कहलाता है।
● ह्रदय का धड़कन पेसमेकर द्वारा नियंत्रित होती है, जिसे  Sinu-auricular  node या S-A नोड भी कहते हैं।
● ह्रदय की धड़कन मापने वाले यंत्र को स्टेथोस्कोप कहते हैं।
3. रक्त वाहिनियाँ (Blood Vessels):- रक्त के परिसंंचए शरीर में तीन प्रकार की रक्त वाहिनियाँ होती है।जो निम्न हैं।
 ★ धमनियाँ (Arteries) :- यह शुुद्ध  रक्त को ह्रदय से शरीर के विभिन्न  भागों में ले जाती है।अपवाद फुफ्फुस धमनी
● धमनियों की दीवारें मोटी, लचीली तथा कपाटहीन होती हैं।
●शरीर के विभिन्न भागों में धमनियाँँ बँटकर धमनिकाएँ बनाती हैं जो विभिन्नअंगों में अत्यंत महीन केशिकाओं में विभक्त हो जाती हैं।
★ रक्त  केशिकाएँ (Bood Capillaries) :-.यह   अत्यंत महीन रक्त नलिकाएँँ हैं। इनकी दीवार चपटी एपिथीलियम  के एक स्तर की बनी होती है।
● केशिकाओं की दीवार जल ,घुले हुए भोज्य पदार्थ एवं उत्सर्जि पदार्थ, ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के लिए पारगम्य होती है।
● विभिन्न केशिकाएँ  पुनः जुड़कर शिरिकाएँ बनाती हैं तथा विभिन्न शिरिकाएँ आपस में जुड़कर शिरा बनाती हैं।
★शिराएँ (Veins) :- यह अशुुुद्ध रक्त को विभिन्न अंगोंं से ह्रदय की ओर ले जाातीहैं। अपवाद    फुफ्फुस  ।
● इसकी दीवार धमनी की अपेक्षा पतली होती है।तथा कपाट युक्त होती हैं।
■ ऊतक कोशिकाओं के बीच स्थित  WBC  सहित रुधिर -प्लाज्मा को ऊतक द्रव या लसीका या लिंफ कहते हैं। इसमें RBC नहीं पाए जाते हैं।
■ लसिका से ऑक्सीजन, पचे भोजन तथा हॉमोर्न ऊतक की कोशिकाओं में विसरित होते रहते हैं और ऊतक की कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड, जल तथा उत्सर्जि पदार्थ लसीका में विसरित होते रहते हैं।
★रक्तचाप (Blood pressure) :-  महाधमनी एवं उनकी मुख्य शाखाओं में रक्त प्रवाह का दबाव रक्तचाप कहलाता है।
● एक स्वस्थ व्यक्ति का सामान्य रक्तचाप   120/80  होता है।
● रक्तचाप की माप  रक्त दाबमापी या स्फिग्मोमैनोमीटर  (Sphygmomanometer) द्वारा किया जाता हैं।
●सामान्य सेअधिक उच्च रक्तचाप हाइपरटेंशन कहलाता है,जिसके कारण कभी-कभी ह्रदयाघात(Heart stroke)हो जाता हैं।
              इस प्रकार यह पाठ समाप्त होता है।मैं आशा करता हूँ कि आप सभी को यह नोट्स अच्छा लगा होगा।क्योंकि कि इस तरह का नोट्स आपको कहीं नहीं मिलेगा जो सभी परीक्षाओं के लिए आवश्यक हैं।clik to downlod pdf
        ■■■■■■◆◆◆◆◆◆धन्यवाद◆◆◆◆■■■■■■■■