Hii दोस्तों मैं Ajeet sir आज के इस पोस्ट में लेकर आया हूँ वर्ग दशम् का राजनीतिक विज्ञान में अध्याय -1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी जो बिहार बोर्ड के विद्यार्थियों के साथ साथ सभी प्रकार के प्रतियोगि परीक्षषाओं के तैयार करने वाले के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। यह नोट्स पुुर्णतः NCERT पर आधारित हैं, जो बहुत ही बारीकी से तैयार किया गया है ताकि सभी प्रकार के प्रश्नों को समायोजित किया जा सकेे।
अध्याय -1 लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी
◆ लोकतंत्र :- लोकतंत्र जनता का जनता के लिए एवं जनता द्वारा शसित शासन है-अब्राहम लिंकन
★ लोकतंत्र के प्रकार:-
- 1.प्रत्यक्ष :- सीधे तोर पर एक जगह इकठ्ठे होकर शासन में हिस्सेदार बनते हैं।
● यह वही संभव है जहाँ की जनसंख्या कम होती है ।जैसे स्विट्जरलैंड।
2.अप्रत्यक्ष :- लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनकर शासन व्यवस्था में हिस्सेदार बनते हैं।
★ लोकतंत्र का स्वरूप :-
1. एकात्मक व्यवस्था :- जहाँ देश के लिए एक ही सरकार होती है।
2. संघीय व्यवस्था:- जहाँ केन्द्र सरकार के साथ -साथ राज्य सरकार भी होती है।
★ भारत के संघात्मक व्यवस्था में सरकार:-
◆ केन्द्र सरकार-जो देश के सभी राज्यों के लिए होता है।
◆ राज्य सरकार-जो सिर्फ उस राज्य के लिए होता है।
★ सत्ता के विकेन्द्रीकरण के तहत स्थानीय स्वशासन स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों द्वारा चलाई जाने वाली सरकार हैं।
★ केन्द्र और राज्य में सरकार के अंग :-
1.विधायिका :- देश या राज्य के लिए कानून बनाने वाली संस्था।
◆ केन्द्र में संसद(लोक सभा/राज्य सभा)
◆राज्य में विधान मंडल(विधान सभा/विधान परिषद)
2. कार्यपालिका :- देश व राज्य में कानून को लागू करने वाली संस्था।
◆ केन्द्र में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं मंत्री परिषद
◆राज्य में राज्यपाल, मुख्यमंत्री एवं मंत्रिपरिषद
3.न्यायपालिका:- देश या राज्य में संविधान एवं कानून के अनुसार सरकार चले इसके लिए न्याय करना।
◆उच्चतम न्यायालय-दिल्ली, बिहार में पटना उच्च न्यायालय।
★ लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी:-
●लोकतंत्र जनता का शासन है।वहाँ सत्ता यानी शासन की शक्ति किसी एक व्यक्ति या समूह के हाथों में नहीं रहती है।शासन की शक्ति का बँटवारा सत्ता में अधिक से अधिक लोगों की साझेदारी सुनिश्चित करता
● नागरिकों द्वारा सरकारी काम- काज में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में भाग लेने की क्रिया को सत्ता में साझेदारी कहा जाता है।
★ लोकतंत्र में सत्ता की साझेदारी का महत्व:-
● शासन व्यवस्था में समाज के सभी वर्गों को शामिल करने के लिए।
● सामाजिक समूहों के बीच आपसी टकराव जैसे जातीय,लैंगिक, भाषायी, सांप्रदायिकता को कम करने के लिए।
● राजनीतिक व्यवस्था को दृढ़ता एवं स्थायित्व प्रदान करने के लिए।
★लोकतंत्र में लोगों की विभिन्न प्रकार की सामाजिक आकांक्षाएं जब आपस में टकराव उत्पन्न करती है तो उसे द्वंद्व कहते है।
● उदाहरण 1961में मुबंई में मराठियों और गुजराती प्रवासी की संख्या।
● 1968 में मेक्सिको ओलंपिक के पदक समारोह में अमेरिकी अश्वेतों पर हो रहे अत्याचार ।
★ समाज में उभरते द्वंद्व से लोकतांत्रिक शासन का व्यवहार प्रभावित होता है।
★ सामाजिक विभेदन अथवा विविधता लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का एक लक्षण है।
★ सामाजिक विभेद सामाजिक संघर्ष एवं सामाजिक विभाजन का कारण है।
★ समाज में वर्तमान सामाजिक अंतर जब अन्य विभिन्नताओं से ऊपर हो जाते हैं तो ये सामाजिक विभाजन के कारण बन जाते हैं।
★ सामाजिक विभेदों की राजनीति से लोकतंत्र को सशक्त बनने का मौका मिलता है।
★ भारत में सामाजिक विभेद जाती, लिंग ,धर्म, संप्रदाय आदि के आधार पर विद्यमान हैं।
★ भारत में जाति के आधार पर सामुदायिक समाज की संरचना होती है।
★ भारत में आज राजनीति और जाति दोनों एक-दूसरे को प्रभावित कर रहे है।
★ राजनीतिक लाभ के लिए जातियों के बीच गठबंधन की प्रवृत्ति देखी जाती है।
★धार्मिक एवं सांप्रदायिक विभेद से भी भारतीय राजनीति प्रभावित होती है।
★ अपने धर्म को श्रेष्ठ और अन्य धर्मों को हेय समझने की भावना सांप्रदायिकता है।
★ लैंगिक विभेद आज के युग की एक गंभीर समस्या है।जिसके कुपरिणाम भ्रूण- हत्या है।
★ लैंगिक विभेद को मिटाने के लिए ही महिला सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ाए जा रहे हैं।
★ राजनीति में महिलाओं की साझेदारी सुनिश्चित करने के लिए पंचायती/नगरीय राज संस्थाओं में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
★ जब सामाजिक विभेद राजनीतिक विभेद में परिवर्तित हो जाता है तब इसका घातक परिणाम राजनीतिक व्यवस्था को भुगतना पड़ता है।
★ सामाजिक विभेद की राजनीति का परिणाम अच्छा ही हो ,इसके लिए शासन को कुछ सावधानियाँ बरतने की आवश्यकता है।clik to downlod pdf
◆ By:- Ajeet sir , Mob :- 9097820435
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