★ जनन वह जैव प्रक्रिया है जिसके द्वारा सभी जीव अपने सदृश जीवों की उत्पत्ति करते हैं।
● पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता प्रजनन क्रिया के द्वारा बनी रहती है।
● जनन जीवों का मुख्य लक्षण है, जिसके द्वारा जीवों की संख्या में वृद्धि होती है।
● जनन क्रिया के द्वारा एक जाती के जीवों के बीच विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
● जनन के दरम्यान कोशिकाओं के केन्द्रक में उपस्थित DNA की प्रतिकृत तैयार होती है।
● DNA में सूचनाओं के रूप में आनुवंशिक गुण मौजूद होते हैं।
● जीवों में जनन के दरम्यान जनन कोशिकाओं में कोशिका विभाजन से युग्मक बनते हैं।
● DNA की प्रतिकृति के साथ-साथ नई कोशिकाओं का निर्माण भी प्रारंभ हो जाता है।
● जनन के द्वारा ही जीव अपनी जातियों का परिरक्षण करते हैं।
● अन्य जैव प्रक्रमों के विपरीत जनन जीवों के अस्तित्व के लिए जरूरी नहीं हैं।
★ जनन मुख्यतः दो प्रकार के होता है- अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन
◆ अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) :- जनन की वह विधि जिसमें जीवों का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है, उसे अलैंगिक जनन कहते हैं।
◆ अलैंगिक जनन विशेषताएँ-
● अलैंगिक जनन से पैदा होनेवाली संतानें आनुवंशिक गुण में ठीक जनकों कीतरह होती हैं, क्योंकि इसमें युग्मकों का संगलन नहीं होता है।
● निम्नवर्गीय जीवों में जनन मुख्य रूप से अलैंगिक विधि के द्वारा होता है।
◆ अलैंगिक जनन के मुख्य विधि निम्नलिखित है।
1.विखंडन (Fission) :- विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एककोशिकीय जीव जनन करते हैं।जैसे जीवाणु, अमीबा, पैरामीशियम,शैवाल, यूग्लीन आदि।● विखंडन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं।- द्विखंड एवं बहुखंडन
● द्विखंडन में जनक का शरीर दो बराबर संतति जीवों में जबकि बहुखंडन में यह कई संतति जीवों में विभाजित हो जाता है।
● विखंडन विधियों से उत्पन्न वंशज को अनुजात कहा जाता है।
2.मुकुलन (Budding):- यह एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर की सतह से कलिका फूटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता हैं।जैसे-यीस्ट, हाइड्रा
3. अपखंडन या पुनर्जनन :- जनन की एक विधि जिसमें सरल जीवों के टुकड़े विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण करते हैं, अपखंडन या पुनर्जनन कहलाती है।
● स्पाइरोगाइरा,हाइड्रा तथा प्लेनेरिया नामक जीवों में अपखंडन या पुनर्जनन द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
4.बीजाणुजनन :- निम्न श्रेणी के पौधों में बीजाणु जनन द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
● बीजाणुओं का निर्माण बीजाणुधारियों में होता है, जो अंकुरित होकर नये पौधों को जन्म देते हैं। जैसे म्यूकर,फर्न,मॉस आदि।
★ कायिक प्रवर्धन :- पादप के कोई भी कायिक भाग से नये पौधों की प्राप्ति कायिक प्रवर्धन कहलाती है।
● कायिक प्रवर्धन अंगूर, गुलाब एवं सजावटी पौधों में सामान्यतः होता है। इसके अलावे शकरकंद, आलू, गन्ना, हल्दी, अदरक, पुदीना, केला इत्यादि में भी कायिक प्रजनन होता है।
● कायिक प्रवर्धन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-प्राकृतिक और कृत्रिम
● प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन जडों, तनों तथा पत्तियों द्वारा होती है।
● कृत्रिम कायिक प्रवर्धन के सामान्य विधियाँ हैं-कलम द्वारा, रोपण द्वारा एवं दाब कलम द्वारा।
● कयिक प्रवर्धन से शीघ्र ,सस्ते में तथा बीजहीन पौधों में जनन की क्रिया संपन्न होती है।
★ ऊतक संवर्धन :- कायिक जनन की एक आधुनिक तकनीक जिसमें स्वास्थ्य वांछित पौधों से ऊतक का एक छोटा टुकड़ा लेकर पोषक माध्यम में विकसित किया जाता है, ऊतक संवर्धन कहलाता है।
◆ लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) : - जनन की वह विधि जिसमें दो भिन्न-भिन्न लिंग अर्थात नर और मादा भाग लेते हैं, लैंगिक जनन कहलाता है।
● नर युग्मक को शुक्राणु(Sperm) तथा मादा युग्मक को अंडाणु(Ovum) कहते हैं, जिनके निषेचन से युग्मनज का निर्माण होता है।
● युग्मनज विभाजित, परिवद्धित और विभेदित होकर वयस्क जीव का निर्माण करता है।
● लैंगिक जनन से आनुवंशिक विविधता एवं उच्च गुणवत्तावाले वंशजों की उत्पत्ति होती है।
● उच्च कोटि के बहुकोशिकीय पादपों एवं जंतुओं में सामान्यतः लैंगिक जनन ही होता है।
● कुछ एककोशिकीय निम्न श्रेणी के जीवों, जैसे पैरामीशियम, शैवाल आदि में भी लैंगिक जनन होता है।
● जब नर या मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाए जाते हैं तो उसे एकलिंगी कहते हैं।
● अधिकांश जीवों में नर और मादा अलग-अलग व्यष्टियों में पाए जाते हैं एवं सुस्पष्ट होते हैं, जैसे-पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर, मोर,कबुतर मेढ़क आदि।
● जब नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में होते हैं तो उसे द्विलिंगी या उभयलिंगी कहते हैं।
● अधिकांश पादपों जैसे सरसों, गुड़हल, केंचुआ, कृमि, हाइड्रा आदि सामान्यतः द्विलिंगी होते हैं।
■■ पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन ■
◆ लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फूल या पुष्प ही वास्तविक जनन भाग हैं, क्योंकि इनमें जनन अंग उपस्थित होते हैं जो जनन-क्रिया के लिए आवश्यक हैं।
★ एक सामान्य पुष्प के चार भाग होते हैं- 1.बाह्रादलपुंज,2.दलपुंज,3.पुमंग और 4.जायांग
● पुमंग(Androecium) :- यह पुष्प का नर भाग है।इसमें कई लंबी-लंबी रचनाएँ होती हैं जिन्हें पुंकेसर कहते हैं।
● पुष्प का वास्तविक नर भाग पुंकेसर ही है।
● पुंकेसर के दो मुख्य भाग तंतु और परागकोश हैं।
● परागकोश से परागकण निकलते हैं।
★ जायांग (Pistil):- यह पुष्प का मादा भाग हैं।जो स्त्रीकेसर का बना होता है।
● पुष्प का वास्तविक मादा भाग स्त्रीकेसर ही है।
● प्रत्येक स्त्रीकेसर में तीन भाग होते हैं-अंडाशय, वर्तिका एवं
वर्तिकाग्र
● अंडाशय(ovary) :-यह स्त्रीकेसर का आधारीय हैं जो पुष्पासन से जुड़ा रहता है।
● अंडाशय के अंदर बीजांड होता है।और बीजांड के अंदर भ्रुणकोष होता है।
● भ्रुणकोष में ही मादा युग्मक या अंडाणु होते हैं।
★ परागण(Polliation) :- परागकोश से वर्तिकाग्र तक परागकणों का स्थानांतरण परागण कहलाता है, जो कई कारकों द्वारा संपन्न होता है।
● परागण दो प्रकार का होता है-स्व-परागण और पर-परागण
★ स्वपरागण (Self-pollination) :- एक ही पुष्प के परागकणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण स्वपरागण कहलाती हैं।
● स्वपरागण केवल उभयलिंगी पौधों में ही होता है, जैसे सूर्यमुखी, बालसम,पोर्चुलाका आदि।
★ पर-परागकण (Cross-pollination) :- एक पुष्प के परागकणों का दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण पर-परागकण कहलाता है।
● पर-परागण के लिए बाहरी कारक कीट,पक्षी, चमगादड़, मनुष्य, वायु, जल आदि कोई भी हो सकते हैं।
● पादपों में निषेचन की क्रिया बीजांडों के भीतर होती है।
★ निषेचन(Fertilization) :- नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहते हैं।
◆ निषेचन निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं:-
1. बाह्म निषेचन(External fertilization) :- जब निषेचन कि क्रिया मादा शरीर के बाहर होता है, तो उसे बाह्म निषेचन कहते हैं। जैसे- मेढ़क
2. आंतरिक निषेचन (Internal fertilization) :- जब निषेचन कि क्रिया मादा शरीर के अंदर होता है, तो उसे आंतरिक निषेचन कहते हैं। जैसे:- मनुष्य, मवेशी, कुत्ता, कीट इत्यादि।
■■■■ मनुष्य में जनन तंत्र ■■■■
★ मनुष्य एकलिंगी प्राणी है।अर्थात नर जनन-अंग और मादा जनन- अंग अलग-अलग व्यक्तियों पाया जाता हैं।
● नर जननांगों वाले पुरुष और मादा जननांगों वाले स्त्री कहलाते हैं।
● किशोरावस्था(Adolescence) :- मनुष्य जननांग लगभग 10-12- बर्ष की आयु में परिपक्व एवं क्रियाशील होने लगते हैं। इस अवस्था में लड़के-लड़कियों के शरीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं।
◆ किशोरावस्था में लड़के एवं लड़कियों के शरीर में होने वाले एकसमान परिवर्तन :-
●काँख ,दोनो जंघाओं के बीच , बाह्म जननांग के समीप ,टाँगों एवं बाहुओं पर बालों का उगना।
● त्वचा तैलीय होना।
● चेहरे पर फुँसियों का निकलना।
●अपने से विपरीत लिंग के व्यक्तियों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होना।
◆ किशोरावस्था में लड़के एवं लड़कियों के शरीर में होने वाले असमान परिवर्तन :-
★ लड़कों में -
● मूँछ और दाढ़ी का उगना प्रारंभ हो जाता है।
● आवाज में भारीपन आने लगता है।
● वृषण में शुक्राणु बनने लगते हैं।
● शिशन (Penis)के आकार में वृद्धि होने लगता है।
★ लड़कियों में:-
● स्तनों में उभार आने लगता है।
● मासिक चक्र प्रारंभ हो जाता है।
● अंड़ाशय में अंडाणु बनने लगता है।
नोट:- किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन की अवस्था को यौवनारम्भ या प्यूबर्टी(Puberty)कहते हैं।
■■■ नर जनन-तंत्र ■■■
◆ मनुष्य में नर जनन -तंत्र के निम्नलिखित अंग है:-
1.वृषण(Testis):- यह पुरुषों का सबसे महत्वपूर्ण जनन -अंग है; क्योंकि शुक्राणु इसी में बनते हैं।
◆ प्रत्येक पुरुष वृषण की संख्या एक जोड़ी होती है, जो उदरगुहा के बाहर त्वचा की बनी थैलियों अर्थात वृषणकोष में स्थित होते हैं।
◆ वृषण में सूक्ष्म नलिकाएँ होती है, जिसे शुक्राणु जनन नलिका कहते हैं। इसमें ही शुक्राणु का निर्माण होता हैं।
◆ शुक्राणु नलिका द्वारा ही टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन स्रावित होता है। जो पुरूषों में मूँछे आना, दाढ़ी आना,बाह्म जननांग का विकास आदि पर नियंत्रण रखता है।
2. अधिवृषण (Epididymis) :- यह एक कुंडलित नलिकाकार रचना है, इसकी 6मीटर होती हैं।इसमें शुक्राणु परिपक्व होता हैं।
3. शुक्रवाहिका (Vasdeferens) :- यह नलिकाकार रचना है ,जो शुक्राणु को शुक्राशय तक पहुचाती है।
4.शुक्राशय (Seminal vesicle) :- यह एक थैली जैसी रचना है, इससे शुक्रद्रव स्रावित होता है।
◆ शुक्रद्रव एवं शुक्राणु मिलकर वीर्य (Semen) बनाते हैं।
5.शिशन (Penis) :- यह एक बेलनाकार रचना है, जो मैथुन की क्रिया में सहायक होता है।
★ दो सहायक ग्रंथियाँ होता है:-
1.प्रोस्टेट ग्रंथि(Prostate gland) :- यह एक क्षारीय द्रव स्रावित करता है, जिससे शुक्राणु जीवित रहता हैं।
2. काऊपर ग्रंथि (Cowper's gland) :- यह एक प्रकार का द्रव स्रावित करता है, जो कि मूत्र मार्ग को चिकना बनाए रखता है, इसमें विशेष प्रकार की गंध होती हैं।
★★★ मादा जनन तंत्र ★★★
★ मादा जनन तंत्र के निम्नलिखित अंग है :-
1.अण्डाशय (Ovary ) :- प्रत्येक स्री में एक जोड़ा अंडाशय पाया जाता है, जो उदरगुहा के निचले के श्रेणीगुहा में पाया जाता हैं।
◆ अंडाशय की लम्बाई 3cm तथा भार 5-6 g होती है।
◆ अंडाशय में ही अंडाणु का निर्माण एवं विकसित होता है। और हॉर्मेन भी स्रावित होता हैं।
2. डिम्बवाहिनी/फैलोपियन नलिका (Oviduct or fallopian tube ):- यह एक जोड़ी चौड़ी नलिकाएँ हैं, जो अंडाशय के ऊपरी भाग से होकर नीचे की ओर गर्भाशय से जुड़ जाती हैं।
◆ इसके दीवार मांसल एवं संकुचनशील होती हैं, जो श्लेष्मिक झिल्ली का बना होता हैं।
◆ फैलोपियन नलिका में ही निषेचन की क्रिया होती हैं।
3. गर्भाशय (Uterus) :- दायीं तथा बायीं अंडवाहिनी एक दूसरे से संयुक्त होकर एक चौड़ी थैली जैसी मांसल रचना बनाती है, जिसे गर्भाशय कहते हैं।
◆ गर्भाशय में ही निषेचित अंडाणु, अर्थात युग्मनज(Zygote) विकास करके भ्रूण (Embryo) का निर्माण करता है।
◆ भ्रूण की नाभि तथा स्री के गर्भाशय की दीवार के बीच में रक्तधानी - तंतुओं जैसी रचना को अपरा (Placenta) कहते हैं।
◆ अपरा (Placenta) द्वारा ही भ्रूण को गर्भाशय से पोषक तत्व प्राप्त होता है, जिसे बच्चे के जन्म के बाद काटकर हटा दिया जाता हैं।
4. योनि (Vagina) :- यह 7-10 सेमी लम्बी पेशीय नली होती है,जो बाहर की ओर एक छिद्र भग (Vulva) के द्वारा खुलती है|
◆ भग या वल्वा एक पतली झिल्ली हायमेन (Hymen) से ढँकी होती है, जिसमें बहुत ही छोटा छिद्र होता है ।
◆ यह झिल्ली पहली बार संभोग के समय या चोट आदि लगाने से टूट जाती हैं ,जिससे योनि में रक्त स्राव होने लगता हैं।फिर दुबारा इसका निर्माण नहीं होता है।
◆ योनि संभोग के समय नर के शिशन को ग्रहण करती हैं। और स्खलित वीर्य (शुक्राणु) गर्भाशय से होते हुए अंडवाहिनी में पहुँचता है।
★ ऋतुस्राव ( Menstruations Cycle) :-
◆ प्रनन का में गर्भावस्था को छोड़कर 26-28 दिनों की अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इनकी आंतरिक दीवार में श्लेष्मा का स्राव होता है, जो 3-4 दिन चलता है, इसे ही रजोधर्म या मासिक धर्म या ऋतु स्राव चक्र कहते हैं।
◆ लडकियों में ऋतुस्राव 10- 12 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होता है, इस अवस्था को मिनार्क (Menarch )कहते हैं।
◆ 45-50 वर्ष के बाद ऋतुस्राव बंद हो जाता है, जिसे रजोनिवृत्ति(Menopause) कहते हैं।इसके बाद गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती हैं।
◆ ऋतुस्राव प्रारंभ होने के 14 दिन बाद अंडाशय से अण्डोत्सर्ग होता है।
◆ गर्भधारण के लिए ऋतुस्राव के 14 वें दिन के आस-पास या 11वें -18वें दिन के अंदर संभोग अनिवार्य है।अर्थात अंडाणु को शुक्राणु द्वारा निषेचन आवश्यक हैं।
◆ यदि अण्डोत्सर्ग के 36 घंटे के अंदर अंडाणुशुक्राणु के द्वारा निषेचित नहीं होता है तो यह नष्ट हो जाता है।
★ लैंगिक जनन संचारित रोग (Asexually Transmitted Disease) :-
◆ यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग या STD कहते हैं।
◆ ऐसे रोग कई तरह के रोगाणुओं के द्वारा होता हैं। जो मनुष्य के योनि, मूत्रमार्ग जैसे स्थानों के नाम और उष्ण वातावरण में बढ़ते हैं।
◆ कुछ महत्वपूर्ण STD रोग निम्नलिखित हैं :-
● बैक्टीरिया जनित रोग - गोनोरिया, सिफलिस, यूरेथ्राइटिस तथा सर्विसाइटिस
● वाइरस जनित रोग - सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स
● प्रोटोजोआ जनित रोग- ट्राइकोमोनिएसिस
★★★जनसंख्या- नियंत्रण ★★★
◆ जनसंख्या को सीमित रखना ही जनसंख्या नियंत्रण कहलाता है। ,जो परिवार नियोजन से ही संभव है।
◆ परिवार में संतानों की संख्या सीमित रखने के लिए कारगर योजना की आवश्यकता होती हैं।जिसे परिवार नियोजन(Family Planning) कहते हैं।
◆ परिवार नियोजन के विभिन्न उपाय है,लेकिन हर तरीके का उद्देश्य अंडाणु-निषेचन को नियंत्रित करना है ,जो गर्भनिरोध कहलाता हैं।
★★ गर्भनिरोध विधि निम्नलिखित हैं:-
(i) प्राकृतिक विधि (Natural method) :- यदि मासिक स्राव के 11वें -18वें दिनों में संभोग से दूर रहा जाए तो अंडाणु का निषेचन नहीं होगा।
(ii) यांत्रिक विधिय (Mechanical methods) :-इन दिनों अंडाणु-निषेचन पर नियंत्रण के लिए कई यांत्रिक तरीके अपनाए जा रहे हैं। जैसे पुरुषों के लिए कंडोम और स्रियों के लिए डायाफ्राम, कॉपर -T तथा लूप इत्यादि ।जो कई प्रकार के संक्रामक रोग से भी बचाव करता है।
(iii) रासायनिक विधियाँ (Chemical methods) :- ऐसी विधियों में विभिन्न रसायनों से निर्मित गर्भ -निरोधक साधनों का उपयोग किया जाता है।जैसे रसायनों से निर्मित क्रीम, गर्भ-निरोधक गोलियाँ इत्यादि।
(iv) सर्जिकल विधियाँ (Surgical methods) :- इसके अंतर्गत पुरुष नसबंदी और स्री नसबंदी कराया जाता है।
(v)समाजिक जागरूकता - जनसंख्या वृद्धि का मानव समाज पर प्रभाव तथा इसके नियंत्रण के लिए विभिन्न साधनों के उपयोग का प्रचार समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं, दूरदर्शन, पोस्टर आदि माध्यमों किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
By:- Ajeet sir ,mob - 9097820435
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