Hii  हलौ  दोस्तों आज मैं आपलोगों के लिए एक बहुत ही मजेदार और महत्वपूर्ण पोस्ट लेकर आया हूँ। जिसमें बताऊंगा Class 10th  के जीव विज्ञान के महत्वपूर्ण पाठ जीवों में जनन के बारे में । जिसे मैं आप लोगों के लिए बहुत ही सरल एवं सुस्पष्ट भाषा में तैयार किए हैं। मैं बादा करता हूँ कि इस प्रकार के नोट्स आपको कहीं नहीं मिलेगा क्योंकि इसे बनाने में बहुत ही ज्यादा मेहनत करना पड़ा हैं। जो वर्ग दशम् के अतिरिक्त सभी प्रकार के प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है
 अध्याय - 6 जीवों में जनन

★ जनन वह जैव प्रक्रिया है जिसके द्वारा सभी जीव अपने सदृश जीवों की उत्पत्ति करते हैं।

● पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता प्रजनन क्रिया के द्वारा बनी रहती है।

● जनन जीवों का मुख्य लक्षण है, जिसके द्वारा जीवों की संख्या में वृद्धि होती है।
● जनन क्रिया के द्वारा एक जाती के जीवों के बीच विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं।
● जनन के दरम्यान कोशिकाओं के केन्द्रक में उपस्थित DNA की प्रतिकृत तैयार होती है।
● DNA में सूचनाओं के रूप में आनुवंशिक गुण मौजूद होते हैं।
● जीवों में जनन के दरम्यान  जनन कोशिकाओं में कोशिका विभाजन से युग्मक बनते हैं।
● DNA की प्रतिकृति के साथ-साथ नई कोशिकाओं का निर्माण भी प्रारंभ हो जाता है।
● जनन के द्वारा ही जीव अपनी जातियों का परिरक्षण करते हैं।
● अन्य जैव प्रक्रमों के विपरीत जनन जीवों के अस्तित्व के लिए जरूरी नहीं हैं। 
★ जनन मुख्यतः दो प्रकार के होता है- अलैंगिक जनन और लैंगिक जनन
◆ अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) :- जनन की वह विधि जिसमें जीवों का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है, उसे अलैंगिक जनन कहते हैं।
◆ अलैंगिक जनन विशेषताएँ- 
● अलैंगिक जनन से पैदा होनेवाली संतानें आनुवंशिक गुण में ठीक जनकों कीतरह होती हैं, क्योंकि इसमें युग्मकों का संगलन नहीं होता है।
● निम्नवर्गीय जीवों में जनन मुख्य रूप से अलैंगिक विधि के द्वारा होता है।
◆ अलैंगिक जनन के मुख्य विधि निम्नलिखित है।
1.विखंडन (Fission) :- विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एककोशिकीय जीव जनन करते हैं।जैसे जीवाणु, अमीबा, पैरामीशियम,शैवाल, यूग्लीन आदि।● विखंडन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं।- द्विखंड एवं बहुखंडन 
● द्विखंडन में जनक का शरीर दो बराबर संतति जीवों में जबकि बहुखंडन में यह कई संतति जीवों में विभाजित हो जाता है।
● विखंडन विधियों से उत्पन्न वंशज को अनुजात कहा जाता है।
2.मुकुलन (Budding):-  यह एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर की सतह से कलिका फूटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता हैं।जैसे-यीस्ट, हाइड्रा
3. अपखंडन या पुनर्जनन :- जनन की एक विधि जिसमें सरल जीवों के टुकड़े विकसित होकर पूर्ण जीव का निर्माण करते हैं, अपखंडन या पुनर्जनन कहलाती है।
● स्पाइरोगाइरा,हाइड्रा तथा प्लेनेरिया नामक जीवों में अपखंडन या पुनर्जनन द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
4.बीजाणुजनन :- निम्न श्रेणी के पौधों में बीजाणु जनन द्वारा अलैंगिक जनन होता है।
● बीजाणुओं का निर्माण बीजाणुधारियों में होता है, जो अंकुरित होकर नये पौधों को जन्म देते हैं। जैसे म्यूकर,फर्न,मॉस आदि।
★ कायिक प्रवर्धन :- पादप के कोई भी कायिक भाग से नये पौधों की प्राप्ति कायिक प्रवर्धन कहलाती है।
● कायिक प्रवर्धन अंगूर, गुलाब एवं सजावटी पौधों में सामान्यतः होता है। इसके अलावे शकरकंद, आलू, गन्ना, हल्दी, अदरक, पुदीना, केला इत्यादि में भी कायिक प्रजनन होता है।
● कायिक प्रवर्धन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-प्राकृतिक और कृत्रिम 
● प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन जडों, तनों तथा पत्तियों द्वारा होती है।
● कृत्रिम कायिक प्रवर्धन के सामान्य विधियाँ हैं-कलम द्वारा, रोपण द्वारा एवं दाब कलम द्वारा। 
● कयिक प्रवर्धन से शीघ्र ,सस्ते में तथा बीजहीन पौधों में जनन की क्रिया संपन्न होती है।
★ ऊतक संवर्धन :- कायिक जनन की एक आधुनिक तकनीक जिसमें स्वास्थ्य वांछित पौधों से ऊतक का एक छोटा टुकड़ा लेकर पोषक माध्यम में विकसित किया जाता है, ऊतक संवर्धन कहलाता है।
◆ लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) : - जनन की वह विधि जिसमें दो भिन्न-भिन्न लिंग अर्थात नर और मादा भाग लेते हैं, लैंगिक जनन कहलाता है।
● नर युग्मक को शुक्राणु(Sperm) तथा मादा युग्मक को अंडाणु(Ovum) कहते हैं, जिनके निषेचन से युग्मनज का निर्माण होता है।
● युग्मनज विभाजित, परिवद्धित और विभेदित होकर वयस्क जीव का निर्माण करता है।
● लैंगिक जनन से आनुवंशिक विविधता एवं उच्च गुणवत्तावाले वंशजों की उत्पत्ति होती है।
● उच्च कोटि के बहुकोशिकीय पादपों एवं जंतुओं में सामान्यतः लैंगिक जनन ही होता है।
● कुछ एककोशिकीय निम्न श्रेणी के जीवों, जैसे  पैरामीशियम, शैवाल आदि में भी लैंगिक जनन होता है।
● जब नर या मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाए जाते हैं तो उसे एकलिंगी कहते हैं।
● अधिकांश जीवों में नर और मादा अलग-अलग व्यष्टियों में पाए जाते हैं एवं सुस्पष्ट होते हैं, जैसे-पपीता, तरबूज, मनुष्य, घोड़ा, बंदर, मोर,कबुतर मेढ़क आदि।
● जब नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में होते हैं तो उसे द्विलिंगी या उभयलिंगी कहते हैं।
● अधिकांश पादपों जैसे सरसों, गुड़हल, केंचुआ, कृमि, हाइड्रा आदि सामान्यतः द्विलिंगी होते हैं।
■■  पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन ■
◆ लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फूल या पुष्प ही वास्तविक जनन भाग हैं, क्योंकि इनमें जनन अंग उपस्थित होते हैं जो जनन-क्रिया के लिए आवश्यक हैं।
★ एक सामान्य पुष्प के चार भाग होते हैं- 1.बाह्रादलपुंज,2.दलपुंज,3.पुमंग और 4.जायांग
● पुमंग(Androecium) :- यह पुष्प का नर भाग है।इसमें कई लंबी-लंबी रचनाएँ होती हैं जिन्हें पुंकेसर कहते हैं।
● पुष्प का वास्तविक नर भाग पुंकेसर ही है।
● पुंकेसर के दो मुख्य भाग तंतु और परागकोश हैं।
● परागकोश से परागकण निकलते हैं।
★ जायांग (Pistil):- यह पुष्प का मादा भाग हैं।जो स्त्रीकेसर का बना होता है।
● पुष्प का वास्तविक मादा भाग स्त्रीकेसर ही है।
● प्रत्येक स्त्रीकेसर में तीन भाग होते हैं-अंडाशय, वर्तिका एवं
वर्तिकाग्र
● अंडाशय(ovary) :-यह स्त्रीकेसर का आधारीय हैं जो पुष्पासन से जुड़ा रहता है।
● अंडाशय के अंदर बीजांड होता है।और बीजांड के अंदर भ्रुणकोष होता है।
● भ्रुणकोष में ही मादा युग्मक या अंडाणु होते हैं।
★ परागण(Polliation) :- परागकोश से वर्तिकाग्र तक परागकणों का स्थानांतरण परागण कहलाता है, जो कई कारकों द्वारा संपन्न होता है।
● परागण दो प्रकार का होता है-स्व-परागण और पर-परागण 
★ स्वपरागण (Self-pollination) :- एक ही पुष्प के परागकणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण स्वपरागण कहलाती हैं।
● स्वपरागण केवल उभयलिंगी पौधों में ही होता है, जैसे सूर्यमुखी, बालसम,पोर्चुलाका आदि।
★ पर-परागकण (Cross-pollination) :- एक  पुष्प के परागकणों का दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण पर-परागकण कहलाता है।
● पर-परागण के लिए बाहरी कारक कीट,पक्षी, चमगादड़, मनुष्य, वायु, जल आदि कोई भी हो सकते हैं। 
● पादपों में निषेचन की क्रिया बीजांडों के भीतर होती है।
★ निषेचन(Fertilization) :- नर युग्मक और मादा युग्मक के संगलन को निषेचन कहते हैं।
◆ निषेचन निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं:- 
1. बाह्म निषेचन(External fertilization) :- जब निषेचन कि क्रिया मादा शरीर के बाहर होता है, तो उसे बाह्म निषेचन कहते हैं। जैसे- मेढ़क 
2. आंतरिक निषेचन (Internal fertilization) :-  जब निषेचन कि क्रिया मादा शरीर के अंदर होता है, तो उसे आंतरिक निषेचन कहते हैं। जैसे:- मनुष्य, मवेशी, कुत्ता, कीट इत्यादि।
■■■■ मनुष्य में जनन तंत्र ■■■■
★ मनुष्य एकलिंगी प्राणी है।अर्थात  नर जनन-अंग और मादा जनन- अंग अलग-अलग व्यक्तियों  पाया जाता हैं।
● नर जननांगों वाले पुरुष और मादा जननांगों वाले स्त्री कहलाते हैं।
● किशोरावस्था(Adolescence) :- मनुष्य जननांग लगभग 10-12- बर्ष की  आयु में परिपक्व एवं क्रियाशील होने लगते हैं। इस अवस्था में लड़के-लड़कियों के शरीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है। इस अवस्था को किशोरावस्था कहते हैं।
◆ किशोरावस्था में लड़के एवं लड़कियों के शरीर में होने वाले  एकसमान परिवर्तन :- 
●काँख ,दोनो जंघाओं के बीच , बाह्म जननांग के समीप ,टाँगों एवं बाहुओं पर बालों का उगना।
● त्वचा तैलीय होना।
● चेहरे पर फुँसियों का निकलना।
●अपने से विपरीत लिंग के व्यक्तियों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होना।
◆ किशोरावस्था में लड़के एवं लड़कियों के शरीर में होने वाले  असमान परिवर्तन :- 
★ लड़कों में  - 
● मूँछ और दाढ़ी का उगना प्रारंभ हो जाता है।
● आवाज में भारीपन आने लगता है।
● वृषण में शुक्राणु बनने लगते हैं।
● शिशन (Penis)के आकार में वृद्धि होने लगता है।
★ लड़कियों में:- 
● स्तनों में उभार आने लगता है।
● मासिक चक्र प्रारंभ हो जाता है।
● अंड़ाशय में अंडाणु बनने लगता है।
नोट:- किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन की अवस्था को यौवनारम्भ या प्यूबर्टी(Puberty)कहते हैं।
■■■ नर जनन-तंत्र ■■■
◆ मनुष्य में नर जनन -तंत्र के निम्नलिखित अंग है:- 
1.वृषण(Testis):- यह पुरुषों का सबसे महत्वपूर्ण जनन -अंग है; क्योंकि शुक्राणु इसी में बनते हैं।
◆ प्रत्येक पुरुष वृषण की संख्या एक जोड़ी होती है, जो उदरगुहा के बाहर त्वचा की बनी थैलियों अर्थात वृषणकोष में स्थित होते हैं।
◆ वृषण में सूक्ष्म नलिकाएँ होती है, जिसे शुक्राणु जनन नलिका कहते हैं। इसमें ही शुक्राणु का निर्माण होता हैं।
◆ शुक्राणु नलिका द्वारा ही टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन स्रावित होता है। जो पुरूषों में मूँछे आना, दाढ़ी आना,बाह्म जननांग का विकास आदि पर नियंत्रण रखता है।
2. अधिवृषण (Epididymis) :- यह एक कुंडलित नलिकाकार  रचना है, इसकी 6मीटर होती हैं।इसमें शुक्राणु परिपक्व होता हैं।
3. शुक्रवाहिका (Vasdeferens) :- यह नलिकाकार रचना है ,जो शुक्राणु को शुक्राशय तक पहुचाती है।
  4.शुक्राशय (Seminal vesicle) :- यह एक थैली जैसी रचना है, इससे शुक्रद्रव स्रावित होता है।
◆ शुक्रद्रव एवं शुक्राणु मिलकर वीर्य (Semen) बनाते हैं।
  5.शिशन (Penis) :- यह एक बेलनाकार रचना है, जो मैथुन की क्रिया में सहायक होता है।
  ★   दो सहायक ग्रंथियाँ होता है:- 
1.प्रोस्टेट ग्रंथि(Prostate gland) :- यह एक क्षारीय द्रव स्रावित करता है, जिससे शुक्राणु जीवित रहता हैं।
  2. काऊपर ग्रंथि (Cowper's gland) :- यह एक प्रकार का द्रव स्रावित करता है, जो कि मूत्र मार्ग को चिकना बनाए रखता है, इसमें विशेष प्रकार की गंध होती हैं।

★★★ मादा जनन तंत्र ★★★
  ★ मादा जनन तंत्र के निम्नलिखित अंग है :- 
1.अण्डाशय (Ovary ) :- प्रत्येक स्री में एक जोड़ा अंडाशय पाया जाता है, जो उदरगुहा के निचले के श्रेणीगुहा में पाया जाता हैं।
◆ अंडाशय की लम्बाई 3cm तथा भार 5-6 g होती है।
◆ अंडाशय में ही अंडाणु का निर्माण एवं विकसित  होता है। और हॉर्मेन भी स्रावित होता हैं।
2. डिम्बवाहिनी/फैलोपियन नलिका (Oviduct or fallopian tube ):- यह एक जोड़ी चौड़ी नलिकाएँ हैं, जो अंडाशय के ऊपरी भाग से होकर नीचे की ओर गर्भाशय से जुड़ जाती हैं।
◆ इसके दीवार मांसल एवं संकुचनशील  होती हैं, जो श्लेष्मिक झिल्ली का बना होता हैं।
◆ फैलोपियन नलिका में ही निषेचन की क्रिया होती हैं।
  3. गर्भाशय (Uterus) :- दायीं तथा बायीं अंडवाहिनी एक दूसरे से संयुक्त होकर एक चौड़ी थैली जैसी मांसल रचना बनाती है, जिसे  गर्भाशय कहते हैं।
◆ गर्भाशय में ही निषेचित अंडाणु, अर्थात युग्मनज(Zygote) विकास करके भ्रूण (Embryo) का निर्माण करता है।
◆ भ्रूण की नाभि तथा स्री के गर्भाशय की दीवार के बीच में रक्तधानी - तंतुओं जैसी रचना को अपरा (Placenta) कहते हैं।
◆ अपरा (Placenta) द्वारा ही भ्रूण को गर्भाशय  से पोषक तत्व प्राप्त होता है, जिसे बच्चे के जन्म के बाद काटकर हटा दिया जाता हैं।
4. योनि (Vagina) :- यह 7-10 सेमी लम्बी पेशीय नली होती है,जो बाहर की ओर एक छिद्र भग (Vulva)  के द्वारा खुलती है|
◆ भग या वल्वा एक पतली झिल्ली हायमेन (Hymen) से ढँकी होती है, जिसमें बहुत ही छोटा छिद्र होता है ।
◆ यह झिल्ली पहली बार संभोग के समय या चोट आदि लगाने से टूट जाती हैं ,जिससे योनि में रक्त स्राव होने लगता हैं।फिर दुबारा इसका निर्माण नहीं होता है।
◆ योनि संभोग के समय नर के शिशन को ग्रहण करती हैं। और स्खलित वीर्य (शुक्राणु)  गर्भाशय से होते हुए अंडवाहिनी में पहुँचता  है।

★ ऋतुस्राव ( Menstruations Cycle) :- 

 ◆ प्रनन का में गर्भावस्था को छोड़कर 26-28 दिनों की अवधि पर गर्भाशय से रक्त तथा इनकी आंतरिक दीवार में श्लेष्मा का स्राव होता है, जो 3-4 दिन चलता है, इसे ही रजोधर्म या मासिक धर्म या ऋतु स्राव चक्र कहते हैं।
◆ लडकियों में ऋतुस्राव 10- 12 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होता है, इस अवस्था को मिनार्क (Menarch )कहते हैं।
◆ 45-50 वर्ष के बाद ऋतुस्राव बंद हो जाता है, जिसे रजोनिवृत्ति(Menopause) कहते हैं।इसके बाद गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती हैं।
◆ ऋतुस्राव प्रारंभ होने के 14 दिन बाद अंडाशय से  अण्डोत्सर्ग होता है।
◆ गर्भधारण के लिए ऋतुस्राव के 14 वें दिन के आस-पास या 11वें -18वें दिन के अंदर संभोग अनिवार्य है।अर्थात अंडाणु को शुक्राणु द्वारा निषेचन आवश्यक हैं।
◆ यदि अण्डोत्सर्ग के 36 घंटे के अंदर अंडाणुशुक्राणु के द्वारा निषेचित नहीं होता है तो यह नष्ट हो जाता है। 
★ लैंगिक जनन संचारित रोग (Asexually Transmitted Disease) :- 
   ◆ यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग या STD कहते हैं।
◆ ऐसे रोग कई तरह के रोगाणुओं के द्वारा होता हैं। जो मनुष्य के योनि, मूत्रमार्ग जैसे स्थानों के नाम और उष्ण वातावरण में बढ़ते हैं।
◆ कुछ महत्वपूर्ण STD रोग निम्नलिखित हैं :- 
  ● बैक्टीरिया जनित रोग - गोनोरिया, सिफलिस, यूरेथ्राइटिस  तथा सर्विसाइटिस 
  ● वाइरस जनित रोग  - सर्विक्स कैंसर, हर्पिस तथा एड्स 
  ● प्रोटोजोआ जनित रोग- ट्राइकोमोनिएसिस 
★★★जनसंख्या- नियंत्रण ★★★
  ◆ जनसंख्या को सीमित रखना ही जनसंख्या नियंत्रण कहलाता है। ,जो परिवार नियोजन से ही संभव है।
◆ परिवार में संतानों की संख्या सीमित रखने के लिए कारगर योजना की आवश्यकता होती हैं।जिसे परिवार नियोजन(Family  Planning) कहते हैं। 
  ◆  परिवार नियोजन के विभिन्न उपाय है,लेकिन हर तरीके का उद्देश्य अंडाणु-निषेचन को नियंत्रित करना है ,जो गर्भनिरोध कहलाता हैं।
★★ गर्भनिरोध  विधि निम्नलिखित हैं:- 
(i) प्राकृतिक विधि (Natural method) :- यदि मासिक स्राव के 11वें -18वें दिनों में संभोग से दूर रहा जाए तो अंडाणु का निषेचन नहीं होगा।
  (ii) यांत्रिक विधिय (Mechanical methods) :-इन दिनों अंडाणु-निषेचन पर नियंत्रण के लिए कई यांत्रिक तरीके अपनाए जा रहे हैं। जैसे पुरुषों के लिए कंडोम और स्रियों के लिए डायाफ्राम, कॉपर -T तथा लूप इत्यादि ।जो कई प्रकार के संक्रामक रोग से भी बचाव करता है।
  (iii) रासायनिक विधियाँ (Chemical methods) :- ऐसी विधियों में विभिन्न रसायनों से निर्मित गर्भ -निरोधक साधनों का उपयोग किया जाता है।जैसे रसायनों से निर्मित क्रीम, गर्भ-निरोधक गोलियाँ इत्यादि।
   (iv) सर्जिकल विधियाँ (Surgical methods) :- इसके अंतर्गत पुरुष नसबंदी और स्री नसबंदी कराया जाता है।
  (v)समाजिक जागरूकता - जनसंख्या वृद्धि का मानव समाज पर प्रभाव तथा इसके नियंत्रण के लिए विभिन्न साधनों के उपयोग का प्रचार समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं, दूरदर्शन, पोस्टर आदि माध्यमों किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

By:- Ajeet sir ,mob - 9097820435
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 ★★★★★★★★धन्यवाद★★★★★★★