नमस्कार दोस्तों   , 

मैं अजीत कुमार स्वागत करता हूँ  आज के इस पोस्ट में |   आज के इस पोस्ट में मैं ऐसे क्रन्तिकारी व्यक्ति के बारे में जानकी देने जा रहा  हूँ  |  जो  समाज में शोषितों और वंचितों के अधिकार के लिए  लड़ते हुए वीर गति को प्राप्त हुए | 

  दोस्तों  आज के  समय में 5   सितम्बर को  को शिक्षक दिवस के रूप में तो  सर्वपल्ली  राधाकृष्णन  के जन्म दिन को तो सभी लोग खूब धूम धाम से मनाते हैं | लेकिन क्या आप जानते हैं कि  आज ही के दिन 5 सितम्बर के बाबू जगदेव प्रसाद  आपने शोषित समाज के अधिकारों के लिए लड़ते हुए  एक जन आन्दोलन में सिपाहियों द्वारा मारें गए थे |   नहीं तो आप इस  पोस्ट  को पूरा पढ़े और कैसा लगा  इसकी जानकारी हमने कमेन्ट बोक्स में आवश्य दें | 

 तो चलिए अब देर न करते हुए जानते हैं  अमर सहीद बाबु जगदेव प्रसाद के जीवनी के बारे में 

बाबू जगदेव प्रसाद

भारतीय क्रांतिकारी (1922-1974)

        बाबू जगदेव प्रसाद ( 2 फरवरी 1922 - 5 सितम्बर 1974)  भारत के बिहार प्रान्त में जन्मे के एक क्रन्तिकारी राजनेता थे।इन्हें 'बिहार लेनिन' के नाम से जाना जाता है  जिन्होने एक अच्छे समाज को गढने में जी जान लगा दिया।

 

जीवन परिचय:-

     जगदेव प्रसाद का जन्म 2 फरवरी 1922 को जहानाबाद के समीप कुर्था प्रखण्ड के कुरहारी ग्राम में कुशवाहा क्षत्रिय समुदाय के परिवार में हुआ था। इनके पिता प्रयाग नारायण पास के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे तथा माता रासकली अनपढ़ थीं। अपने पिता के मार्गदर्शन में बालक जगदेव ने मिडिल की परीक्षा पास की। हाईस्कूल के लिए जहानाबाद चले गए। निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा होने के कारण जगदेव जी की प्रवृत्ति शुरू से ही संघर्षशील तथा जुझारू रही तथा बचपन से ही विद्रोही स्वाभाव' के थे।

राजनीति:-

       जब वे उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए पटना गए । वहां पटना विश्वविद्यालय से स्नातक तथा परास्नातक उत्तीर्ण किया। वही उनका परिचय चन्द्रदेव प्रसाद वर्मा से हुआ। चंद्रदेव ने जगदेव बाबू को विभिन्न विचारको को पढने, जानने-सुनने के लिए प्रेरित किया। अब जगदेव जी ने सामाजिक-राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया और राजनीति की तरफ प्रेरित हुए। इसी बीच वे शोसलिस्ट पार्टी से जुड़ गए और पार्टी के मुखपत्र 'जनता' का संपादन भी किया। एक संजीदा पत्रकार की हैसियत से उन्होंने दलित-पिछड़ों-शोषितों की समस्याओं के बारे में खूब लिखा तथा उनके समाधान के बारे में अपनी कलम चलायी।

        बिहार में उस समय समाजवादी आन्दोलन की बयार थी, लेकिन जे.पी. तथा लोहिया के बीच सैद्धान्तिक मतभेद था। जब जे. पी. ने राम मनोहर लोहिया का साथ छोड़ दिया तब बिहार में जगदेव बाबू ने लोहिया का साथ दिया। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को मजबूत किया और समाजवादी विचारधारा का देशीकरण करके इसको घर-घर पहुंचा दिया।

        जिस लड़ाई की बुनियाद आज मै डाल रहा हूँ, वह लम्बी और कठिन होगी। चूंकि मै एक क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण कर रहा हूँ इसलिए इसमें आने-जाने वालों की कमी नहीं रहेगी परन्तु इसकी धारा रुकेगी नहीं। इसमें पहली पीढ़ी के लोग मारे जायेगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जायेगे तथा तीसरी पीढ़ी के लोग रा ज करेंगे। जीत अंततोगत्वा हमारी ही होगी।

 


        जगदेव बाबू ने 1967 के विधानसभा चुनाव में संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी), 1966 में (प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का एकीकरण हुआ था) के उम्मीदवार के रूप में कुर्था में जोरदार जीत दर्ज की। उनके अथक प्रयासों से स्वतंत्र बिहार के इतिहास में पहली बार 'संविद सरकार ' बनी तथा महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाया गया।  जगदेव बाबू तथा कर्पूरी ठाकुर की सूझ-बूझ से पहली गैर-कांग्रेस सरकार का गठन हुआ, लेकिन पार्टी की नीतियों तथा विचारधारा के मसले लोहिया से अनबन हुयी और 'कमाए धोती वाला और खाए टोपी वाला' की स्थिति देखकर संसोपा छोड़कर 25 अगस्त 1967 को 'शोषित दल' नाम से नयी पार्टी बनाई। उस समय अपने भाषण में उन्होने कहा था-

     जगदेव बाबू एक महान राजनीतिक दूरदर्शी थे, वे हमेशा शोषित समाज की भलाई के बारे में सोचा और इसके लिए उन्होंने पार्टी तथा विचारधारा किसी को महत्त्व नहीं दिया। मार्च 1970 में जगदेव बाबू के दल के समर्थन से दरोगा प्रसाद राय मुख्यमंत्री बने। 

            बिहार में राजनीति का प्रजातंत्रीकरण को स्थाई रूप देने के लिए उन्होंने सामाजिक-सांस्कृतिक क्रान्ति की आवश्यकता महसूस किया। वे रामस्वरूप वर्मा द्वारा स्थापित 'अर्जक संघ' (स्थापना 1 जून, 1968) में शामिल हुए। 7 अगस्त 1972 को शोषित दल तथा रामस्वरूप वर्मा जी की पार्टी 'समाज दल' का एकीकरण हुआ और 'शोषित समाज दल' नमक नयी पार्टी का गठन किया गया। एक दार्शनिक तथा एक क्रांतिकारी के संगम से पार्टी में नयी उर्जा का संचार हुआ। जगदेव बाबू पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री के रूप में जगह-जगह तूफानी दौरा आरम्भ किया। वे नए-नए तथा जनवादी नारे गढ़ने में निपुण थे. सभाओं में जगदेव बाबू के भाषण बहुत ही प्रभावशाली होते थे, जहानाबाद की सभा में उन्होंने कहा था-



दस का शासन नब्बे पर, नहीं चलेगा, नहीं चलेगा.

सौ में नब्बे शोषित है, नब्बे भाग हमारा है।

धन-धरती और राजपाट में, नब्बे भाग हमारा है॥

मानववाद की क्या पहचान- ब्रह्मण भंगी एक सामानपुनर्जन्म और भाग्यवाद- इनसे जन्मा ब्राह्मणवाद।

 


 

 


 

 

 

 


             इसी समय बिहार में कांग्रेस की तानाशाही सरकार के खिलाफ जे.पी. के नेतृत्व में विशाल छात्र आन्दोलन शुरू हुआ और राजनीति की एक नयी दिशा-दशा का सूत्रपात हुआ। मई 1974 को 6 सूत्री मांगो को लेकर पूरे बिहार में जन सभाएं की तथा सरकार पर भी दबाव डाला गया लेकिन भ्रष्ट प्रशासन पर इसका कोई असर नहीं पड़ा, जिससे 5 सितम्बर 1974 से राज्य-व्यापी सत्याग्रह शुरू करने की योजना बनी।

मृत्यु

'5 सितम्बर 1974' को जगदेव बाबू हजारों की संख्या में 'शोषित समाज' का नेतृत्व करते हुए अपने दल का काला झंडा लेकर आगे बढ़ने लगे। कुर्था में तैनात डी.एस.पी. ने सत्याग्रहियों को रोका तो जगदेव बाबू ने इसका प्रतिवाद किया और विरोधियों के पूर्वनियोजित जाल में फंस गए। सत्याग्रहियों पर पुलिस ने अचानक हमला बोल दिया। जगदेव बाबू चट्टान की तरह जमें रहे और अपना क्रांतिकारी भाषण जरी रखा, निर्दयी पुलिस ने उनके ऊपर गोली चला दी। गोली सीधे उनके गर्दन में जा लगी, वे गिर पड़े। पुलिस घायलावस्था में उन्हें पुलिस स्टेशन ले गयी। पानी-पानी चिल्लाते हुए जगदेव जी ने थाने में ही अंतिम सांसे ली।

 

लोकप्रिय संस्कृति में

बिहार में विभिन्न स्थानों का नाम बाबू जगदेव प्रसाद के नाम पर रखा गया है। उनकी याद में कई प्रतिमाओं का भी अनावरण किया गया है।

 


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