12वीं के राजनीतिक विज्ञान में शीत युद्ध (Cold War)



बिहार बोर्ड 12वीं के राजनीतिक विज्ञान में शीत युद्ध (Cold War) एक महत्वपूर्ण विषय है। यहाँ शीत युद्ध से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण लघु और दीर्घ प्रश्न और उनके उत्तर दिए गए हैं:

लघु प्रश्न:

  1. शीत युद्ध क्या है?
    • उत्तर: शीत युद्ध द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ के बीच राजनीतिक और सैन्य तनाव का दौर था। इसमें न तो सीधी सैन्य टकराव होती थी और न ही युद्ध, बल्कि यह एक प्रकार की राजनीतिक और वैचारिक लड़ाई थी जिसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी विचारधारा और प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे।
  2. शीत युद्ध की शुरुआत कब हुई थी?
    • उत्तर: शीत युद्ध की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद, 1945 के अंत और 1946 के प्रारंभ में हुई थी।
  3. शीत युद्ध के दो प्रमुख पक्ष कौन थे?
    • उत्तर: शीत युद्ध के दो प्रमुख पक्ष थे: अमेरिका और सोवियत संघ।
  4. नाटो और वारसॉ संधि का उद्देश्य क्या था?
    • उत्तर: नाटो (NATO) का उद्देश्य सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था, जबकि वारसॉ संधि (Warsaw Pact) सोवियत संघ के नेतृत्व में एक सैन्य गठबंधन था, जिसका उद्देश्य नाटो के खिलाफ सामूहिक रक्षा करना था।

दीर्घ प्रश्न:

  1. शीत युद्ध के मुख्य कारणों का विश्लेषण करें।
    • उत्तर: शीत युद्ध के मुख्य कारणों में शामिल हैं:

v  विचारधारात्मक मतभेद:- अमेरिका और सोवियत संघ के बीच लोकतंत्र और पूंजीवाद बनाम समाजवाद और साम्यवाद के विचारधारात्मक मतभेद।

v  आर्थिक और सैन्य ताकत:- युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ वैश्विक शक्ति के केंद्र बन गए और दोनों ने अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश की।

v  युद्ध की समाप्ति के बाद शक्ति का संतुलन:- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पुराने यूरोपीय शक्ति संतुलन का विघटन और नए शक्ति केंद्रों का उभार।

v  परमाणु हथियारों की दौड़:- अमेरिका और सोवियत संघ के बीच परमाणु हथियारों की दौड़ ने तनाव को और बढ़ा दिया।

  1. शीत युद्ध के प्रमुख घटनाक्रमों का वर्णन करें।
    • उत्तर: शीत युद्ध के प्रमुख घटनाक्रमों में शामिल हैं:

v  बर्लिन ब्लॉकेड (1948-49):- सोवियत संघ ने पश्चिमी बर्लिन को आपूर्ति करने वाले मार्गों को बंद कर दिया था, जिसका जवाब अमेरिका और उसके सहयोगियों ने हवाई मार्ग से आपूर्ति करके दिया।

v  कोरियाई युद्ध (1950-53):- उत्तर कोरिया द्वारा दक्षिण कोरिया पर आक्रमण के परिणामस्वरूप अमेरिका और चीन के बीच संघर्ष।

v  क्यूबा मिसाइल संकट (1962):- सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइल स्थापित कर दिए, जिसे अमेरिका ने धमकी के रूप में देखा और दोनों देशों के बीच तीव्र तनाव उत्पन्न हुआ।

v  वियतनाम युद्ध (1955-75):- अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम की रक्षा के लिए सैन्य हस्तक्षेप किया, जबकि उत्तर वियतनाम को सोवियत संघ और चीन का समर्थन प्राप्त था।

  1. शीत युद्ध के प्रभाव और परिणामों का विश्लेषण करें।
    • उत्तर: शीत युद्ध के प्रभाव और परिणामों में शामिल हैं:

v  वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था का परिवर्तन:- शीत युद्ध ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में दोध्रुवीय दुनिया की स्थापना की, जिसमें अमेरिका और सोवियत संघ मुख्य शक्ति केंद्र बने।

v  आर्थिक और सैन्य विकास:- शीत युद्ध के दौरान दोनों प्रमुख शक्तियों ने विशाल सैन्य और आर्थिक संसाधनों का निवेश किया।

v  स्थानीय संघर्षों और युद्धों में हस्तक्षेप:- शीत युद्ध के दौरान कई स्थानीय संघर्षों और युद्धों में अमेरिका और सोवियत संघ ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप किया।

v  सोवियत संघ का पतन:- शीत युद्ध का अंत 1991 में सोवियत संघ के पतन के साथ हुआ, जिससे वैश्विक राजनीति में एक नई यथार्थता का उदय हुआ।

 

4.       4. क्यूबा मिसाइल संकट क्या हैं वर्णन करें |

         क्यूबा मिसाइल संकट:-  (Cuban Missile Crisis) 1962 में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुआ एक गंभीर  संकट था, जिसने दुनिया को परमाणु युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया। यह संकट क्यूबा में सोवियत संघ द्वारा लगाए गए मध्यम-रेंज के बैलिस्टिक मिसाइलों के कारण उत्पन्न हुआ।

क्यूबा मिसाइल संकट का संक्षिप्त विवरण:-

    i.        पृष्ठभूमि:

v  क्यूबा की स्थिति: -1959 में क्यूबा में फिदेल कास्त्रो की समाजवादी सरकार ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था। अमेरिका ने क्यूबा की सरकार का विरोध किया और सोवियत संघ ने क्यूबा के साथ सहयोग बढ़ाया।

v  सोवियत मिसाइल:- सोवियत संघ ने क्यूबा में मिसाइलों को तैनात करने का निर्णय लिया, जो अमेरिका तक पहुँच सकते थे। यह कदम सोवियत संघ ने अमेरिका के यूरोप में तैनात मिसाइलों के जवाब में उठाया था।

   ii.        संकट का आरंभ:

v  अमेरिका की पहचान:- अक्टूबर 1962 में, अमेरिका ने क्यूबा में सोवियत मिसाइलों की पहचान की। राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी ने इस पर तत्काल कार्रवाई की और एक समुद्री नाकाबंदी (blockade) की घोषणा की।

  iii.        अंतर्राष्ट्रीय तनाव:

v  सैनिक तनाव:- अमेरिका और सोवियत संघ के बीच की स्थिति अत्यंत तनावपूर्ण हो गई। दोनों देशों ने अपने-अपने सैन्य बलों को अलर्ट किया और परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ गया।

v  वार्ता और समाधान:- बाद में, सोवियत संघ के प्रमुख निकिता क्रुश्चेव और अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी के बीच वार्ता के बाद, सोवियत संघ ने क्यूबा से मिसाइल हटा लिए और अमेरिका ने क्यूबा पर हमले का आश्वासन दिया।

  iv.        परिणाम:

v  तटस्थता की प्राप्ति:- संकट के बाद, अमेरिका और सोवियत संघ ने एक गर्म युद्ध की स्थिति से बचने के लिए "गर्म लाइन" (hotline) स्थापित की, जिससे आपातकालीन संवाद संभव हो सके।

v  शीत युद्ध का नया मोड़:- क्यूबा मिसाइल संकट शीत युद्ध के सबसे तनावपूर्ण क्षणों में से एक था और इसके समाधान ने दोध्रुवीय तनावों को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।

इस संकट ने दिखाया कि दोनों महाशक्तियों के बीच के तनाव और उनके सैन्य और राजनीतिक निर्णय वैश्विक स्थिरता को कितना प्रभावित कर सकते हैं।

 

    5. गुट निरपेक्ष आंदोलन क्या हैं वर्णन करें |

 

   गुट निरपेक्ष आंदोलन (Non-Aligned Movement या NAM):-  एक अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक आंदोलन था, जिसका उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व की नई व्यवस्था में किसी भी प्रमुख शक्ति गुट के प्रति निष्ठा या पक्षपात से बचना था।

 गुट निरपेक्ष आंदोलन का संक्षिप्त विवरण:

  1. उद्भव और उद्देश्य:

v  प्रारंभिक कारण:- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, दुनिया दो प्रमुख गुटों में विभाजित हो गई थीएक तरफ अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देश (नाटो), और दूसरी तरफ सोवियत संघ और उसके सहयोगी (वारसॉ संधि)। कई देशों ने महसूस किया कि वे इन गुटों के विवादों और दबावों से बाहर रहना चाहते थे।

v  मुख्य उद्देश्य:- गुट निरपेक्ष आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था, वैश्विक शक्ति के गुटों से स्वतंत्र रहना, और स्वतंत्र और तटस्थ नीति अपनाना।

  1. स्थापना:

v  पहली बैठक:- गुट निरपेक्ष आंदोलन की औपचारिक शुरुआत 1961 में बैंडुंग, इंडोनेशिया में हुई थी, जहाँ 29 देशों ने इस आंदोलन की स्थापना की। इसे बैंडुंग सम्मेलन (Bandung Conference) कहा जाता है।

v  संस्थापक नेता:- इस आंदोलन के प्रमुख संस्थापक नेताओं में जवाहरलाल नेहरू (भारत), नेल्सन मंडेला (दक्षिण अफ्रीका), जमाल अब्देल नासर (मिस्र), और सुकार्नो (इंडोनेशिया) शामिल थे।

  1. प्रमुख सिद्धांत और नीतियाँ:

v  स्वतंत्रता और तटस्थता: -गुट निरपेक्ष देशों ने यह सुनिश्चित किया कि वे किसी भी प्रमुख शक्ति गुट के पक्ष में नहीं आएँगे और स्वतंत्र नीति अपनाएंगे।

v  आर्थिक और सामाजिक विकास:- गुट निरपेक्ष आंदोलन ने विश्व विकास और शांति के लिए वैश्विक सहयोग को बढ़ावा दिया और उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष किया।

v  सैन्य संघर्षों से बचाव:- इस आंदोलन ने सैन्य संघर्षों और शीत युद्ध की स्थिति से बचने के लिए आपसी सहयोग और शांति की दिशा में काम किया।

  1. प्रभाव और महत्व:

v  वैश्विक प्रभाव:- गुट निरपेक्ष आंदोलन ने शीत युद्ध के दौरान कई विकासशील देशों को एक सामूहिक मंच प्रदान किया और उन्हें शक्ति के गुटों के दबाव से मुक्त रखने में मदद की।

v  वर्तमान स्थिति:- आज भी, गुट निरपेक्ष आंदोलन कुछ देशों के बीच स्वतंत्र और तटस्थ राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है, हालाँकि इसका प्रभाव कम हो गया है क्योंकि वैश्विक राजनीति अधिक जटिल हो गई है।

गुट निरपेक्ष आंदोलन ने अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शीत युद्ध की स्थिति के दौरान स्वतंत्रता और तटस्थता की अवधारणा को मजबूत किया।