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Hii दोस्तों आज मैं लेकर आया हूँ Class 10th का जीव विज्ञान (Biology) के महत्वपूर्ण पाठ नियंत्रण और समन्वय जो कि परीक्षा के दृृृष्टिकोण से अतिआवश्यक है।सभी परीक्षाओं में नियंत्रण और समन्वय से अधिक से अधिक प्रश्न पूछें जाते हैं। इसलिए यह नोट्स आप लोगों के लिए बहुत उपयोगी साबित होने बाला है, क्योंकि इस प्रकार के सरल भाषा और महत्वपूर्ण बिन्दुओं के साथ नोट्स आपको कहीं नहीं मिलेगा ।
■■■■■ नियंत्रण और समन्वय ■■■■■■
★ जैव कार्यो के सफल संचालन हेतु सभी जीवों के अंगों एवं अंगतंत्रो का समन्वय तथा नियंत्रण जरूरी है।
★ सजीवों में अंगों तथा अंगतंत्रो का समन्वय और नियंत्रण तंत्रिकीय एवं रासायनिक होता है।
★ तंत्रिकीय नियंत्रण तंत्रिका द्वारा तथा रासायनिक नियंत्रण हॉर्मोन द्वारा संपादित होता है।
★ पौधों में तंत्रिकीय नियंत्रण नहीं पाया जाता है।
★ पौधों में पाई जानेवाली गतियाँ दो प्रकार की होती हैं- एक वृद्धि से संबंधित एवं दूसरी वृद्धि से असंबंधित रहती है।
★ उद्दीपनों से प्रभावित होनेवाली पौधों की गतियों को अनुवर्तिनी गति (Tropic movement) कहते है।
★ बाह्रा उद्दीपनों की प्रवृति के अनुसार अनुवर्तिनी गति कई प्रकार की होती है।
(i) प्रकाश-अनुवर्तन (Phototropism) :- इसमें पौधे के अंग प्रकाश की ओर गति करते हैं। यह गति तने के शिर्ष भाग एवं पतियों में होता हैं।
(ii) गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism) :- इसमें पौधे के अंग गुरुत्वाकर्षण के दिशा में गति करते हैं। यह गति पौधों के जड़ों में दिखाई पड़ता है।
(iii) रासायनिक अनुवर्तन (Chemotropism) :- यह गति रासायनिक उद्दीपनों के कारण होता हैं। जो बीजांड में दिखाई पड़ता है।
(iv) जलानुवर्तन (Hydrotropism) :- इसमें पौधे के अंग जल की ओर गति करते हैं।
◆◆◆ पौधों में रासायनिक समन्वय ◆◆◆
★ रासायनिक समन्वय एवं नियंत्रण के लिए पौधे हॉर्मोन का स्राव करते है।
★ हॉर्मोन जटिल कार्बनिक एवं रासायनिक यौगिक होते है जो नलिकाविहीन ग्रंथियों से स्रावित होते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया-क्षेत्र से दूर होता है।
★ हॉर्मोन बहुत लघु मात्रा में निकलते हैं, लेकिन उपापचयी क्रियाओं के सफल निष्पादन के लिए पर्याप्त होते हैं।
★ पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करनेवाले रासायनिक पदार्थ को पादप हॉर्मोन (Phytormone) कहते हैं।
★ रासायनिक संघटन तथा कार्यविधि के आधार पर पादप हॉर्मोन को निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है।
(i)ऑक्सिन (Auxin) :- इस हॉर्मोन का खोज डार्विन ने 1880 ई०में किया था ।यह पौधों के स्तंभ-शीर्ष पर संंश्लेषित होता हैं।
◆ यह कोशिका-विभाजन एवं कोशिका-दीर्घन तथा बीजरहित फलों के उत्पादन में सहायक होते हैं।
(ii) जिब्रेलिन (Gibberellins) :- इसकी खोज जापानी वैज्ञानिक कुरोसावा ने 1926ई० किया था। यह एक जिबरेलिक अम्ल है, जो जटिल कार्बनिक यौगिक हैं।
◆यह पौधों के स्तंभ की लम्बाई में वृद्धि करता है।तथा इसका उपयोग से वृहत् आकर के फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता हैं।
(iii) साइटोकाइनिन (Cytokinin) :- इसका खोज मिलर ने किया था।यह ऐसे रासायनिक कार्बबनिक पदार्थ है जो बीजों के भ्रूणपोष एवं पौधों के जड़ों में संश्लेषित होतेे हैं।
◆ यह पर्णहरित या क्लोरोफिल को काफी समय तक नष्ट नहीं होने देता हैं। जिसके कारण पत्तियाँ अधिक समय तक हरी और ताजी बनी रहती हैं।तथा फलों, फूलों में इसकी सांद्रता अधिक रहतीं हैं।
(iv) ऐबसिसिक अम्ल (Abscisic acid) :- यह एक वृद्धिरोधक कार्बनिक यौगिक है, जो पत्तियों तनों एवं बीजों मेें संंश्लेषित होता है।
◆ यह पत्तियों के मुरझाने एवं विलगन में सहायक होता है।तथा कलियों की वृद्धि और बीजों के अंकुरण को रोकता है।
(v) एथिलीन (Ethylene) :- यह गैसीय प्रकृति का वृद्धि नियंत्रण हॉर्मोन है, पौधों के फलों, फूलों, बीजों, पत्तियों तथा जड़ों में उत्पादित होता है।
◆ यह पौधे के तने के अग्रभाग में बनता है और विसरित होकर फलों को पकाने में सहायकता करता है। इसलिए इसे फल पकानेवाला हॉर्मोन भी कहते हैं।तथा कृत्रिम रुप से फल पकाने में इसका उपयोग किया जाता हैं।
■■■■■ जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय ■■■■
● जंतुओं में विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं के बीच समन्वय तथा उनका नियंत्रण दो प्रकार से होता हैं।
1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous control and coordination) :- यह तंत्रिकाओं केे द्वारा होता है।
★ तंत्रिका तंत्र (Nervous System) :- अंंगों का वैसा समूह ,जो शरीर के विभिन्न अंगों की भिन्न-भिन्न क्रियाओं को संचालित एवं नियंत्रित करता है, उसेे तंत्रिका तंंत्र कहलाता है।
● उच्च श्रेणी के जंतुओं में तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क, स्पाइनल कॉर्डतथा विभिन्न प्रकार की तंत्रिकाओं से बना होता है।
● तंत्रिका तंत्र के संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं।
● प्रत्येक न्यूरॉन में एक साइटॉन,एक एक्सॉन तथा कई डेंड्रॉइट्स होते हैं।
● डेंड्रॉइट्स का शाखित स्वत्रंत सिरा संवेदनाओं को ग्रहण कर साइटॉन को पहुँचाता है। एक्सॉन के द्वारा तंत्रिका-आवेग आगे की ओर बढ़ते हैं।
● मनुष्य के तंत्रिका तंत्र के तीन प्रमुख भाग है- केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, परिधीय तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र।
★ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous Systaem) :- तंत्रिका तंत्र का वह भाग ,जो सम्पूर्ण शरीर तथा स्वयं तंत्रिका तंत्र पर नियंत्रण रखते है,केंद्रीय तंत्रिका तंत्र कहलाता है।
● केंद्रीय तंत्रिका तंत्र दो भागों के मिलने से बना होता है ,जो मस्तिष्क (Brain)और मेरुरज्जु (Spinal Cord) कहलाता है।
■■■■ मनुष्य का मस्तिष्क ■■■■■
★ मस्तिष्क (Brain):- यह एक बहुत ही संवेदनशील एवं कोमल अंग है, यह हड्डी का बना एक आवरण में बंद होता है, जिसे मस्तिष्कगुहा या Cranium कहते हैं।
● मस्तिष्क एक झिल्ली मेनिंजिज से घिरा होता है जो बाहरी आघातों से इसकी सुरक्षा करते हैं।
● मेनिंजिज और मस्तिष्क के बीच तथा मस्तिष्क की गुहाएँ सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य से भरी होती हैं। यह बाहरी आघातों से सुरक्षा के अतिरिक्त मस्तिष्क को नम रखता है।
● मनुष्य मस्तिष्क अन्य कशेरुकों की अपेक्षा ज्यादा जटिल और विकसित होता है। इसका औसतन आयतन लगभग 1650ml तथा वजन पुरुषों में 1400g एवं महिलाओं में 1250g होता हैं।
● मनुष्य के मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग -अग्रमस्तिष्क,मध्यमस्तिष्क,तथा पश्चमस्तिष्क हैं।
(i) अग्रमस्तिष्क (Fore brain) :- यह मस्तिष्क का मुख्य भाग है, इसके अंतर्गत सेरीब्रम तथा डाइनसिफलोन आते हैं।
★सेरीब्रम (Cerebrum) :- यह अग्रमस्तिष्क का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जो बुद्धिमत्ता, याददाश्त, इच्छा शक्ति, चिन्तन, ज्ञान वाणी तथा ऐच्छिक गतियों का केन्द्र होता हैं।
★ डाइनसिफलोन (Diencephalon) :- यह अग्रमस्तिष्क का एक छोटा सा भाग है, जो दर्द, ठंडा, गर्म, भूख,प्यास, प्रेम, घृणा, गुस्सा, खुशी इत्यादि का केन्द्र है।
(ii) मध्यमस्तिष्क (Mid brain):- यह शरीर का संतुलन एवं आँख की पेशियों के नियंत्रण का केन्द्र होता हैं।
(iii) मध्यमस्तिष्क (Hind brain) :- यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है,जो सेरीबेलम तथाा मस्तिष्क स्टेम से बना होता है।
★ सेरीबेलम (Cerebellum) :- यह शरीर का संतुलन बनाए रखता है, तथा आंतरिक कान के संतुलन भाग से संंवेेेदनाएँ ग्रहण करता है।
★ मेडुला आब्लोगेंटा (Medulla oblongata) :- यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है, जो अनैच्छिक पेशियों के कार्य का नियंत्रण करता है।
★ मेरुरज्जु (Spinal Cord ) :- यह मस्तिष्क स्टेम का पिछला होता है, जिसकी रचना बेलनाकार छड़ के समान होता हैं।
● मेरुरज्जु संवेदी आवेगों को मस्तिष्क में लाता है एवं मस्तिष्क से ले जाता है।तथा प्रतिवर्ती क्रियाओं के केन्द्र का कार्य करता है।
■ मनुष्य मस्तिष्क के कार्य :- मस्तिष्क के प्रमुख कार्य आवेग ग्रहण करना, ग्रहण किए गए आवेगों का विश्लेषण करना तथा उचित अनुक्रिया के लिए अंगों को निर्देश निर्गत करना, विभिन्न् आवेगों का सहसंंबंधन तथा सूचनाओं का भंंडारण करना है।
● न्यूरॉन में आवेग का संचरण एक निश्चित पथ में होता है, जिसे प्रतिवर्ती चाप (Reflex Aec) कहते हैं।
2. रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical Control and Coordination) :- जंतुओं मेें रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय हॉर्मोन के द्वारा होता है, जो अंतःस्रावी ग्रंंथियों द्वारा स्रावित होते हैं।
★ मनुष्य में तीन प्रकार की ग्रंथियाँ पायी जाती है-
1. बहिस्रावी ग्रंथि :- वैसे ग्रंथि जो अपना स्राव नलिका द्वारा संंबंधित अंंगों में पहुँँचाती है, बहिस्रावी ग्रंथि कहलाता है। जैसे- स्वेद ग्रंथि ,यकृत आदि। इससे इंजाइम स्रावित होता है।
2. अंतःस्रावी ग्रंथि (Endocrine Gland) :- वैसा ग्रंंथि जो नलिकाविहीन होती है, वह हॉर्मोन का स्राव सीधे रक्त करती हैं, अंतःस्रावी ग्रंथि कहलाता है।
★ मनुष्य में पाई जानेवाली अंतःस्रावी ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं
(i) पीयुष ग्रंथि (Pituitary gland) :- यह कपाल की स्फेनॉइड हड्डी में एक गड्ढे में स्थित रहती है। जो मस्तिष्क के डाइनसिफलोन से जुड़ा होता हैं। यह सबसे छोटी ग्रंथि हैं।
●इसे को मास्टर ग्रंथि कहते हैं,इसका वजन लगभग 0.6g होता है
● पीयुष ग्रंथि दो मुख्य भागों अग्रपिंडक तथा पश्चपिंडक में बँटा होता है।
● अग्रपिंडक द्वारा स्रावित एक हॉर्मोन वृद्धि हॉर्मोन कहलाता है।जो शरीर की वृद्धि विशेषकर हड्डियों तथा मांसपेशियों के वृद्धि को नियंत्रित करता है।
● इस हॉर्मोन के अधिक स्राव से शरीर भीमकाय हो जाता है तथा कम स्राव से मनुष्य में बौनापन होता हैं।
● अग्रपिंडक द्वारा स्रावित अन्य हॉर्मोन नर में शुक्राणु तथा मादा में अण्डाणु बनने की क्रिया का नियंत्रण करता है। एवं एक अन्य हॉर्मोन मादा के स्तनों को दुग्ध-स्राव के लिए उत्तेजित करता है।
● पश्चपिंडक द्वारा स्रावित हॉर्मोन शरीर में जल -संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता हैं।तथा एक अन्य हॉर्मोन मादा में बच्चे के जनन में सहायक होता है।
(ii) अवटु ग्रंथि (Thyroid gland) :- यह ग्रंथि ट्रैकिया के दोनों ओर लैरिंक्स के नीचे स्थित रहती हैं।यह शरीर का सबसे बड़ा अंतःस्रावी ग्रंथि है, जिसका वजन 5-6 ग्राम तक होता हैं।
● इससे थाइरॉक्सिन हॉर्मोन स्रावित होता है, जिसके संश्लेषण के लिए आयोडीन का होना अनिवार्य है।
● थाइरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के समान्य उपापचय का नियंत्रण करता है।
● यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषकरहड्डियों, बालो इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।
● आयोडीन की कमी से थाइरॉक्सिन हॉर्मोन कम बनता है ,जिसके कारण घेंघा रोग होता है,एवं शारीरिक तथा मानसिक वृद्धि प्रभावित होता हैं।
(iii) पराअवटु ग्रंथि (Parathyroid gland) :- यह मनुष्य के गला में थायराइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होती हैं। इससे स्रावित हॉर्मोन रक्त में कैल्सियम की मात्रा का नियंत्रण करता है।
(iv) अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) :- यह प्रत्येक वृक्क के ठीक ऊपर स्थित होता है, ये पीले रंग की होती है।
● इस ग्रंथि के दो भाग होते है- बाहरी भाग को कोर्टेक्स तथा अंदर वाले भाग को मेडुला कहते हैं।
●एड्रीनल ग्रंथि का कॉर्टेक्स भाग ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स, मिनटैलोकॉर्टिक्वायड्स तथा लिंग हॉर्मोन एवं मेडुला भाग एपिनेफ्रीन और नॉरएपिनेफ्रीन नामक हॉर्मोन स्रावित करते हैं।
● एपिनेफ्रीन को एड्रीनिन अथवा एड्रीनालिन भी कहते है, जो अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, डर, गुस्सा एवं उत्तेजना की स्थिति में स्रावित होता हैं।इसे आपातकाल हॉर्मोन भी कहा जाता हैं।
(v)अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्वीपिका(Lapet of Langerhans):- अग्न्याशय में विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं के समूह पाए जाते हैं, जिन्हें लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ कहते हैं।
● इसके द्वारा स्रावित हॉर्मोन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करता हैं।उचित मात्रा में इनका स्राव नहीं होने से मधुमेह नामक रोग हो जाता हैं।
● मधुमेह की स्थिति में चिकित्सक कम चीनी खाने तथा इन्सुलिन की सुई लगवाने की सलाह देते हैं।
(vi) जनन ग्रंथि (Gonads):- यह जनन-कोशिकाओं के निर्माण करता है।
● अंडाशय से स्रावित हॉर्मोन बालिकाओं के शरीर में यौवनावस्था में होनेवाले परिवर्तन को नियंत्रित करता है जबकि वृषण से स्रावित टेस्टोस्टेरोन नामक हॉर्मोन पुरूषोचित लैंगिक लक्षणों का परिवर्द्धन करता है।
इस प्रकार पाठ नियंत्रण तथा समन्वय के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त किए।अतः मुझे आशा है कि आप को यह पोस्ट अच्छा लगा होगा। यदि नहीं तो अपनी सुझाव कोमेंट बोक्स में दें।
◆◆◆◆◆◆ धन्यवाद ◆◆◆◆◆◆
★ सजीवों में अंगों तथा अंगतंत्रो का समन्वय और नियंत्रण तंत्रिकीय एवं रासायनिक होता है।
★ तंत्रिकीय नियंत्रण तंत्रिका द्वारा तथा रासायनिक नियंत्रण हॉर्मोन द्वारा संपादित होता है।
★ पौधों में तंत्रिकीय नियंत्रण नहीं पाया जाता है।
★ पौधों में पाई जानेवाली गतियाँ दो प्रकार की होती हैं- एक वृद्धि से संबंधित एवं दूसरी वृद्धि से असंबंधित रहती है।
★ उद्दीपनों से प्रभावित होनेवाली पौधों की गतियों को अनुवर्तिनी गति (Tropic movement) कहते है।
★ बाह्रा उद्दीपनों की प्रवृति के अनुसार अनुवर्तिनी गति कई प्रकार की होती है।
(i) प्रकाश-अनुवर्तन (Phototropism) :- इसमें पौधे के अंग प्रकाश की ओर गति करते हैं। यह गति तने के शिर्ष भाग एवं पतियों में होता हैं।
(ii) गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism) :- इसमें पौधे के अंग गुरुत्वाकर्षण के दिशा में गति करते हैं। यह गति पौधों के जड़ों में दिखाई पड़ता है।
(iii) रासायनिक अनुवर्तन (Chemotropism) :- यह गति रासायनिक उद्दीपनों के कारण होता हैं। जो बीजांड में दिखाई पड़ता है।
(iv) जलानुवर्तन (Hydrotropism) :- इसमें पौधे के अंग जल की ओर गति करते हैं।
◆◆◆ पौधों में रासायनिक समन्वय ◆◆◆
★ रासायनिक समन्वय एवं नियंत्रण के लिए पौधे हॉर्मोन का स्राव करते है।
★ हॉर्मोन जटिल कार्बनिक एवं रासायनिक यौगिक होते है जो नलिकाविहीन ग्रंथियों से स्रावित होते हैं। इनके संश्लेषण का स्थान इनके क्रिया-क्षेत्र से दूर होता है।
★ हॉर्मोन बहुत लघु मात्रा में निकलते हैं, लेकिन उपापचयी क्रियाओं के सफल निष्पादन के लिए पर्याप्त होते हैं।
★ पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करनेवाले रासायनिक पदार्थ को पादप हॉर्मोन (Phytormone) कहते हैं।
★ रासायनिक संघटन तथा कार्यविधि के आधार पर पादप हॉर्मोन को निम्नलिखित पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है।
(i)ऑक्सिन (Auxin) :- इस हॉर्मोन का खोज डार्विन ने 1880 ई०में किया था ।यह पौधों के स्तंभ-शीर्ष पर संंश्लेषित होता हैं।
◆ यह कोशिका-विभाजन एवं कोशिका-दीर्घन तथा बीजरहित फलों के उत्पादन में सहायक होते हैं।
(ii) जिब्रेलिन (Gibberellins) :- इसकी खोज जापानी वैज्ञानिक कुरोसावा ने 1926ई० किया था। यह एक जिबरेलिक अम्ल है, जो जटिल कार्बनिक यौगिक हैं।
◆यह पौधों के स्तंभ की लम्बाई में वृद्धि करता है।तथा इसका उपयोग से वृहत् आकर के फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता हैं।
(iii) साइटोकाइनिन (Cytokinin) :- इसका खोज मिलर ने किया था।यह ऐसे रासायनिक कार्बबनिक पदार्थ है जो बीजों के भ्रूणपोष एवं पौधों के जड़ों में संश्लेषित होतेे हैं।
◆ यह पर्णहरित या क्लोरोफिल को काफी समय तक नष्ट नहीं होने देता हैं। जिसके कारण पत्तियाँ अधिक समय तक हरी और ताजी बनी रहती हैं।तथा फलों, फूलों में इसकी सांद्रता अधिक रहतीं हैं।
(iv) ऐबसिसिक अम्ल (Abscisic acid) :- यह एक वृद्धिरोधक कार्बनिक यौगिक है, जो पत्तियों तनों एवं बीजों मेें संंश्लेषित होता है।
◆ यह पत्तियों के मुरझाने एवं विलगन में सहायक होता है।तथा कलियों की वृद्धि और बीजों के अंकुरण को रोकता है।
(v) एथिलीन (Ethylene) :- यह गैसीय प्रकृति का वृद्धि नियंत्रण हॉर्मोन है, पौधों के फलों, फूलों, बीजों, पत्तियों तथा जड़ों में उत्पादित होता है।
◆ यह पौधे के तने के अग्रभाग में बनता है और विसरित होकर फलों को पकाने में सहायकता करता है। इसलिए इसे फल पकानेवाला हॉर्मोन भी कहते हैं।तथा कृत्रिम रुप से फल पकाने में इसका उपयोग किया जाता हैं।
■■■■■ जंतुओं में नियंत्रण और समन्वय ■■■■
● जंतुओं में विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं के बीच समन्वय तथा उनका नियंत्रण दो प्रकार से होता हैं।
1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous control and coordination) :- यह तंत्रिकाओं केे द्वारा होता है।
★ तंत्रिका तंत्र (Nervous System) :- अंंगों का वैसा समूह ,जो शरीर के विभिन्न अंगों की भिन्न-भिन्न क्रियाओं को संचालित एवं नियंत्रित करता है, उसेे तंत्रिका तंंत्र कहलाता है।
● उच्च श्रेणी के जंतुओं में तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क, स्पाइनल कॉर्डतथा विभिन्न प्रकार की तंत्रिकाओं से बना होता है।
● तंत्रिका तंत्र के संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई को तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन कहते हैं।
● प्रत्येक न्यूरॉन में एक साइटॉन,एक एक्सॉन तथा कई डेंड्रॉइट्स होते हैं।
● डेंड्रॉइट्स का शाखित स्वत्रंत सिरा संवेदनाओं को ग्रहण कर साइटॉन को पहुँचाता है। एक्सॉन के द्वारा तंत्रिका-आवेग आगे की ओर बढ़ते हैं।
● मनुष्य के तंत्रिका तंत्र के तीन प्रमुख भाग है- केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, परिधीय तंत्रिका तंत्र तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र।
★ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous Systaem) :- तंत्रिका तंत्र का वह भाग ,जो सम्पूर्ण शरीर तथा स्वयं तंत्रिका तंत्र पर नियंत्रण रखते है,केंद्रीय तंत्रिका तंत्र कहलाता है।
● केंद्रीय तंत्रिका तंत्र दो भागों के मिलने से बना होता है ,जो मस्तिष्क (Brain)और मेरुरज्जु (Spinal Cord) कहलाता है।
■■■■ मनुष्य का मस्तिष्क ■■■■■
★ मस्तिष्क (Brain):- यह एक बहुत ही संवेदनशील एवं कोमल अंग है, यह हड्डी का बना एक आवरण में बंद होता है, जिसे मस्तिष्कगुहा या Cranium कहते हैं।
● मस्तिष्क एक झिल्ली मेनिंजिज से घिरा होता है जो बाहरी आघातों से इसकी सुरक्षा करते हैं।
● मेनिंजिज और मस्तिष्क के बीच तथा मस्तिष्क की गुहाएँ सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य से भरी होती हैं। यह बाहरी आघातों से सुरक्षा के अतिरिक्त मस्तिष्क को नम रखता है।
● मनुष्य मस्तिष्क अन्य कशेरुकों की अपेक्षा ज्यादा जटिल और विकसित होता है। इसका औसतन आयतन लगभग 1650ml तथा वजन पुरुषों में 1400g एवं महिलाओं में 1250g होता हैं।
● मनुष्य के मस्तिष्क के तीन प्रमुख भाग -अग्रमस्तिष्क,मध्यमस्तिष्क,तथा पश्चमस्तिष्क हैं।
(i) अग्रमस्तिष्क (Fore brain) :- यह मस्तिष्क का मुख्य भाग है, इसके अंतर्गत सेरीब्रम तथा डाइनसिफलोन आते हैं।
★सेरीब्रम (Cerebrum) :- यह अग्रमस्तिष्क का सबसे महत्वपूर्ण भाग है, जो बुद्धिमत्ता, याददाश्त, इच्छा शक्ति, चिन्तन, ज्ञान वाणी तथा ऐच्छिक गतियों का केन्द्र होता हैं।
★ डाइनसिफलोन (Diencephalon) :- यह अग्रमस्तिष्क का एक छोटा सा भाग है, जो दर्द, ठंडा, गर्म, भूख,प्यास, प्रेम, घृणा, गुस्सा, खुशी इत्यादि का केन्द्र है।
(ii) मध्यमस्तिष्क (Mid brain):- यह शरीर का संतुलन एवं आँख की पेशियों के नियंत्रण का केन्द्र होता हैं।
(iii) मध्यमस्तिष्क (Hind brain) :- यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है,जो सेरीबेलम तथाा मस्तिष्क स्टेम से बना होता है।
★ सेरीबेलम (Cerebellum) :- यह शरीर का संतुलन बनाए रखता है, तथा आंतरिक कान के संतुलन भाग से संंवेेेदनाएँ ग्रहण करता है।
★ मेडुला आब्लोगेंटा (Medulla oblongata) :- यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है, जो अनैच्छिक पेशियों के कार्य का नियंत्रण करता है।
★ मेरुरज्जु (Spinal Cord ) :- यह मस्तिष्क स्टेम का पिछला होता है, जिसकी रचना बेलनाकार छड़ के समान होता हैं।
● मेरुरज्जु संवेदी आवेगों को मस्तिष्क में लाता है एवं मस्तिष्क से ले जाता है।तथा प्रतिवर्ती क्रियाओं के केन्द्र का कार्य करता है।
■ मनुष्य मस्तिष्क के कार्य :- मस्तिष्क के प्रमुख कार्य आवेग ग्रहण करना, ग्रहण किए गए आवेगों का विश्लेषण करना तथा उचित अनुक्रिया के लिए अंगों को निर्देश निर्गत करना, विभिन्न् आवेगों का सहसंंबंधन तथा सूचनाओं का भंंडारण करना है।
● न्यूरॉन में आवेग का संचरण एक निश्चित पथ में होता है, जिसे प्रतिवर्ती चाप (Reflex Aec) कहते हैं।
2. रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical Control and Coordination) :- जंतुओं मेें रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय हॉर्मोन के द्वारा होता है, जो अंतःस्रावी ग्रंंथियों द्वारा स्रावित होते हैं।
★ मनुष्य में तीन प्रकार की ग्रंथियाँ पायी जाती है-
1. बहिस्रावी ग्रंथि :- वैसे ग्रंथि जो अपना स्राव नलिका द्वारा संंबंधित अंंगों में पहुँँचाती है, बहिस्रावी ग्रंथि कहलाता है। जैसे- स्वेद ग्रंथि ,यकृत आदि। इससे इंजाइम स्रावित होता है।
2. अंतःस्रावी ग्रंथि (Endocrine Gland) :- वैसा ग्रंंथि जो नलिकाविहीन होती है, वह हॉर्मोन का स्राव सीधे रक्त करती हैं, अंतःस्रावी ग्रंथि कहलाता है।
★ मनुष्य में पाई जानेवाली अंतःस्रावी ग्रंथियाँ निम्नलिखित हैं
(i) पीयुष ग्रंथि (Pituitary gland) :- यह कपाल की स्फेनॉइड हड्डी में एक गड्ढे में स्थित रहती है। जो मस्तिष्क के डाइनसिफलोन से जुड़ा होता हैं। यह सबसे छोटी ग्रंथि हैं।
●इसे को मास्टर ग्रंथि कहते हैं,इसका वजन लगभग 0.6g होता है
● पीयुष ग्रंथि दो मुख्य भागों अग्रपिंडक तथा पश्चपिंडक में बँटा होता है।
● अग्रपिंडक द्वारा स्रावित एक हॉर्मोन वृद्धि हॉर्मोन कहलाता है।जो शरीर की वृद्धि विशेषकर हड्डियों तथा मांसपेशियों के वृद्धि को नियंत्रित करता है।
● इस हॉर्मोन के अधिक स्राव से शरीर भीमकाय हो जाता है तथा कम स्राव से मनुष्य में बौनापन होता हैं।
● अग्रपिंडक द्वारा स्रावित अन्य हॉर्मोन नर में शुक्राणु तथा मादा में अण्डाणु बनने की क्रिया का नियंत्रण करता है। एवं एक अन्य हॉर्मोन मादा के स्तनों को दुग्ध-स्राव के लिए उत्तेजित करता है।
● पश्चपिंडक द्वारा स्रावित हॉर्मोन शरीर में जल -संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता हैं।तथा एक अन्य हॉर्मोन मादा में बच्चे के जनन में सहायक होता है।
(ii) अवटु ग्रंथि (Thyroid gland) :- यह ग्रंथि ट्रैकिया के दोनों ओर लैरिंक्स के नीचे स्थित रहती हैं।यह शरीर का सबसे बड़ा अंतःस्रावी ग्रंथि है, जिसका वजन 5-6 ग्राम तक होता हैं।
● इससे थाइरॉक्सिन हॉर्मोन स्रावित होता है, जिसके संश्लेषण के लिए आयोडीन का होना अनिवार्य है।
● थाइरॉक्सिन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन तथा वसा के समान्य उपापचय का नियंत्रण करता है।
● यह शरीर की सामान्य वृद्धि विशेषकरहड्डियों, बालो इत्यादि के विकास के लिए अनिवार्य है।
● आयोडीन की कमी से थाइरॉक्सिन हॉर्मोन कम बनता है ,जिसके कारण घेंघा रोग होता है,एवं शारीरिक तथा मानसिक वृद्धि प्रभावित होता हैं।
(iii) पराअवटु ग्रंथि (Parathyroid gland) :- यह मनुष्य के गला में थायराइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होती हैं। इससे स्रावित हॉर्मोन रक्त में कैल्सियम की मात्रा का नियंत्रण करता है।
(iv) अधिवृक्क ग्रंथि (Adrenal gland) :- यह प्रत्येक वृक्क के ठीक ऊपर स्थित होता है, ये पीले रंग की होती है।
● इस ग्रंथि के दो भाग होते है- बाहरी भाग को कोर्टेक्स तथा अंदर वाले भाग को मेडुला कहते हैं।
●एड्रीनल ग्रंथि का कॉर्टेक्स भाग ग्लूकोकॉर्टिक्वायड्स, मिनटैलोकॉर्टिक्वायड्स तथा लिंग हॉर्मोन एवं मेडुला भाग एपिनेफ्रीन और नॉरएपिनेफ्रीन नामक हॉर्मोन स्रावित करते हैं।
● एपिनेफ्रीन को एड्रीनिन अथवा एड्रीनालिन भी कहते है, जो अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, डर, गुस्सा एवं उत्तेजना की स्थिति में स्रावित होता हैं।इसे आपातकाल हॉर्मोन भी कहा जाता हैं।
(v)अग्न्याशय की लैंगरहैंस की द्वीपिका(Lapet of Langerhans):- अग्न्याशय में विशिष्ट प्रकार की कोशिकाओं के समूह पाए जाते हैं, जिन्हें लैंगरहैंस की द्वीपिकाएँ कहते हैं।
● इसके द्वारा स्रावित हॉर्मोन रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित करता हैं।उचित मात्रा में इनका स्राव नहीं होने से मधुमेह नामक रोग हो जाता हैं।
● मधुमेह की स्थिति में चिकित्सक कम चीनी खाने तथा इन्सुलिन की सुई लगवाने की सलाह देते हैं।
(vi) जनन ग्रंथि (Gonads):- यह जनन-कोशिकाओं के निर्माण करता है।
● अंडाशय से स्रावित हॉर्मोन बालिकाओं के शरीर में यौवनावस्था में होनेवाले परिवर्तन को नियंत्रित करता है जबकि वृषण से स्रावित टेस्टोस्टेरोन नामक हॉर्मोन पुरूषोचित लैंगिक लक्षणों का परिवर्द्धन करता है।
इस प्रकार पाठ नियंत्रण तथा समन्वय के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त किए।अतः मुझे आशा है कि आप को यह पोस्ट अच्छा लगा होगा। यदि नहीं तो अपनी सुझाव कोमेंट बोक्स में दें।
◆◆◆◆◆◆ धन्यवाद ◆◆◆◆◆◆
1 Comments
Thank you sir
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